सीएए के बहाने गृहमंत्री अमित शाह ने तकरीबन सभी विरोधियों का नाम लेकर निशाना साधा। मगर इस दौरान उन्होंने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का सबसे ज्यादा बार नाम लेकर यूपी की सियासत को भाजपा बनाम सपा रहने का संकेत दिया। अमित शाह ने जहां राहुल बाबा एंड कंपनी, ममता दीदी समेत अपने सभी विरोधियों को एक साथ निशाना साध रहे थे। वहीं उन्होंने एक बार तो अपने भाषण के दौरान करीब पांच मिनट तक सिर्फ अखिलेश यादव का नाम लेकर उन पर निशाना साधा।
वरिष्ठ पत्रकार और बीजेपी की रणनीति को करीब से जानने वाले ब्रजेश शुक्ल के मुताबिक अमित शाह ने सोची समझी रणनीति के तहत ही अखिलेश यादव पर निशाना साधा। बीजेपी हमेशा से अपनी राजनीतिक लड़ाई के दूसरे छोर पर समाजवादी पार्टी को ही रखना चाहती है। यही नहीं समाजवादी पार्टी की भी यही रणनीति रहती है कि प्रदेश में उसकी लड़ाई बीजेपी से ही रहे। साथ ही मायावती पर नरमी बरत कर भविष्य के लिए बीजेपी अपना एक राजनीतिक दांव सुरक्षित रखना चाहती है।
सीएए से ध्यान हटाने की कोशिश सभी नेताओं ने भले ही सीएए के समर्थन में रैलियां की लेकिन इस मुद्दे पर दो टूक बोलकर इस मुद्दे से ध्यान हटाने की भी कोशिश की। सभी प्रमुख नेताओं ने अगले तीन महीने में अयोध्या में राम मन्दिर बनाने की बात पर कहकर यूपी की सियासत में ध्रुवीकरण का तानाबाना भी बुन दिया।
मायावती के प्रति नरमी, प्रियंका नजरअंदाज अमित शाह के अलावा अन्य नेताओं ने विरोधियों का नाम लेकर जमकर घेरने की कोशिश की। मगर सभी नेताओं ने बसपा सुप्रीमो मायावती का नाम बहुत कम लिया। जबकि यूपी की राजनीतिक सरगर्मी का केन्द्र बनीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के प्रति किसी भी नेता ने तल्खी नहीं दिखायी। अमित शाह हो या फिर जेपी नड्डा सभी ने प्रियंका को नजरअंदाज ही किया। यानी भाजपा ने कांग्रेस से अपनी लड़ाई को केन्द्र तक ही सीमित रखने की चाल चली है तो साथ ही उत्तर प्रदेश की सियासत में प्रियंका गांधी को तवज्जो न देकर उनकी राजनीति को सिरे से खारिज करने की भी कोशिश की। दरअसल, भाजपा चाहती है कि यूपी में कांग्रेस मजबूत तो हो मगर बस इतनी कि वह उनके विरोधी मतों को बांट सके।