अंग्रेजों के जमाने के कानून में होगा बदलाव
राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) को सिविल पुलिस में मिलाने की तैयारी जोरों पर शुरू हो गई है। इसको लेकर पुलिस महानिदेशक मुख्यालय स्तर पर विचार भी शुरू हो गया है। अगर इस मुद्दे पर साकारात्मक रुख रहा तो 1862 के पुलिस एक्ट में बदलाव करते हुए जीआरपी का जिला पुलिस में विलय हो जाएगा। जिसके बाद जीआरपी के थाने भी जिले के एसएसपी या एसपी के अंडर में आएंगे।
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बदलाव के लिए बनी कमेटी
डीजीपी सुलखान सिंह ने इस संबंध में बुधवार को डीजीपी मुख्यालय में बैठक की। खर्चा, समय और मैनपावर के सही इस्तेमाल के लिए डीजीपी सुलखान सिंह इस पर प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहा है। डीजी रेलवे वीके मौर्या की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई है, जो यूपी जैसे बड़े राज्यों की जीआरपी पर स्टडी कर रिपोर्ट तैयार कर देगी। इस कमेटी में आईजी कानून व्यवस्था आनंद कुमार और आईजी रेंज लखनऊ जयनारायण सिंह भी बतौर सदस्य शामिल हैं। कमेटी के सदस्य इस संबंध में जल्द ही मुंबई, बिहार, हैदराबाद, चेन्नई और मध्य प्रदेश की जीआरपी का दौरा करेंगे और वहां जाकर देखेंगे कि वहां रेलवे और स्थानीय पुलिस के बीच किस तरह समन्वय स्थापित किया जाता है।
रिपोर्ट के बाद होगा ऐतिहासिक फैसला
अगर कमेटी की रिपोर्ट में बदलाव को लेकर सहमति जताई जाती है तो जीआरपी के प्रदेशभर के 65 थानों और छह अनुभागों का सिविल पुलिस में विलय होना लगभग तय है। जिसकी कमान उस जिले के एसएसपी या एसपी के हाथ में रहेगी। दरअसल जीआरपी को सिविल पुलिस में मर्ज करने के पीछे ये तर्क दिया जा रहा है कि जीआरपी के पास ज्यादा काम नहीं रहता। जीआरपी के पास ज्यादातर मामले चोरी के होते हैं। इसलिए अगर जीआरपी को सिविल पुलिस के साथ जोड़ दिया जाएगा, तो बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
डीजीपी सुलखान सिंह की सालों पुरानी इच्छा
डीजीपी सुलखान सिंह ने डीआईजी रेलवे लखनऊ के पद पर रहते हुए जीआरपी को सिविल पुलिस में मर्ज करने का प्रस्ताव तैयार किया था। उस समय वरिष्ठ अफसरों और सरकार ने इस पर आगे विचार करने से इंकार कर दिया था। लेकिन डीजीपी बनने के बाद वह जीआरपी को प्रदेश के नौवें जोन की तरह ही देख रहे हैं। वे लगातार नौवें जोन के तौर पर ही जीआरपी की समीक्षा कर रहे हैं। प्रदेश में अभी आठ जोन लखनऊ, कानपुर, आगरा, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर और इलाहाबाद हैं। इसमें गोरखपुर को छोड़कर सभी जोन में एडीजी तैनात हैं। अब जीआरपी की गिनती भी जोन के तौर पर की जा रही है। यानी अब प्रदेश में जीआरपी समेत नौ जोन हो जाएंगे। जीआरपी में पहले जहां डीजी रैंक के अधिकारी तैनात होते थे, वहीं अब पूरी जिम्मेदारी एडीजी को दी गई है।
इस बदलाव से कम होंगे खर्चे
जीआरपी में सिविल पुलिस से ही कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, एसआई व इंस्पेक्टर प्रतिनियुक्ति पर भेजे जाते हैं। इसके बाद बड़े पैमाने पर उनके जीआरपी में तबादले होते हैं। टीए-डीए पर बड़ा खर्च आता है। छह अनुभाग के लिए छह पुलिस लाइंस हैं, जहां 40 से 50 जीआरपीकर्मी रिजर्व में रहते हैं। ये ऐसी मैनपावर है, जिसका इस्तेमाल नहीं हो पाता। चारबाग सर्किल में तैनात सीओ का क्षेत्र फैजाबाद तक है। छोटी से छोटी घटना होने पर उन्हें वहां जाना पड़ता है, जिसमें काफी समय और खर्च लगता है। छह अनुभाग और एसपी के छह पद खत्म होने से खर्च बचेगा। जब जीआरपी जिला पुलिस में मर्ज होगी तो ट्रेन जहां से गुजरेगी, उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संबंधित थानों की होगी, सुरक्षा इंतजाम ज्यादा और बेहतर होंगे।
आसान नहीं होगी नई राह
इस पूरी प्रक्रिया के बीच जानकारों का मानना है कि 1862 के पुलिस एक्ट में बदलाव इतना आसान भी नहीं होगा। जीआरपी का काम केवल रेलवे स्टेशन परिसर और ट्रेन के अंदर होने वाली आपराधिक घटनाओं को रोकने का नहीं होता, बल्कि जीआरपी के एक थाने की सीमा कई जिलों के स्टेशनों तक होती है। जीआरपी के सिविल पुलिस में मर्जर के बाद सीमा क्षेत्र के लिए लड़ने वाली पुलिस ट्रेन में होने वाली घटनाओं को लेकर रोजाना सीमा विवाद करेगी। पहले से कानून व्यवस्था और अपराध की विवेचनाओं से दबी सिविल पुलिस पर काम का बोझ बढ़ेगा। साथ ही रेलवे से समन्वय में दिक्कतें आएंगी।