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लोकसभा चुनाव 2019 : मायावती के लिए पीएम पद नहीं ‘गढ़’ बचाना है बेहद जरूरी, देखें वीडियो

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति है, लेकिन सपा-बसपा दोनों ही दल मिलकर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, यह काफी हद तक साफ है…

लखनऊOct 06, 2018 / 07:36 pm

Hariom Dwivedi

लोकसभा चुनाव 2019 : मायावती के लिए पीएम पद नहीं गढ़ बचाना बड़ी चुनौती

लखनऊ. कांग्रेस को लेकर मायावती के रुख के बाद उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति है, लेकिन सपा-बसपा दोनों ही दल मिलकर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, यह काफी हद तक साफ है। हालांकि, अभी किसी भी दल की ओर से गठबंधन को लेकर कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, फिर भी दोनों ही दलों के प्रमुख गठबंधन को तैयार हैं, ऐसा वह सार्वजनिक मंचों पर कहते दिख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती की पहली प्राथमिकता प्रधानमंत्री बनना नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बचाये रखना है।
2014 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी भले ही 34 सीटों पर दूसरे नंबर की पार्टी रही हो, बावजूद इसके चुनाव में बसपा एक भी सीट जीतने में सफल नहीं रही थी। 2012 तक सत्ता में काबिज बसपा 2017 के विधानसभा चुनाव में भी महज 19 सीटों पर ही सिमट गई। वजह थी दलित वोटों का बंटवारा। बसपा के मूल दलित वोटों के एक खेमे के एक हिस्से ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था। इस बार भी बीजेपी दलित वोटरों को रिझाने में लगी है। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन को भी इसी दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है। पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि आगामी लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतने के लिये बसपा को सपा जैसे मजूबत साथी की जरूरत है।
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मायावती की अक्सर शिकायत रही है कि गठबंधन की सहयोगी पार्टियां अपने वोटों को बसपा में स्थानांतरित कराने में असमर्थ रही हैं, जबकि उनकी पार्टी के दलित वोट आसानी से सहयोगियों को ट्रांसफर हो जाते हैं। यूपी में अखिलेश यादव उनकी ‘सम्मानजनक सीटों‘ की डिमांड मांगने को तैयार हैं। अखिलेश उनकी डिमांड मानने को तैयार हैं। सपा प्रमुख का कहना है कि बीजेपी के सफाये के लिये यूपी में विपक्षी दलों का गठबंधन जरूरी है। उपचुनाव में जीत से उत्साहित अखिलेश यादव अच्छी तरह से जानते हैं कि बसपा के बिना बीजेपी को हराना काफी मुश्किल है। गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी के मुकाबले जनता ने सपा-बसपा गठबंधन पर अधिक भरोसा दिखाया। आगामी चुनाव में भी बीजेपी से मुकाबले के दोनों दल इस फॉर्मूले पर विचार कर रहे हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी साम, दाम, दंड और भेद के उपयोग से सपा-बसपा गठबंधन से निपटने की तैयारी में है।
बसपा-कांग्रेस के अपने-अपने हित
मायावती अपनी चिर-प्रतिद्वंदी पार्टी सपा से गठबंधन को तो तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस को गठबंधन का हिस्सा बनाने को लेकर उत्सुक नहीं हैं। उन्हें पता है कि सपा-बसपा के साथ कांग्रेस के आने से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला। पार्टी रणनीतिकारों का कहना है कि ज्यादातर अपर कास्ट ही कांग्रेस के लिये वोट करता है, जो शायद सपा-बसपा गठबंधन के लिये वोट न करें, जिसका फायदा बीजेपी को होगा। वैसे भी कांग्रेस और बसपा एक-दूसरे को लंबे समय तक नुकसान पहुंचाने के लिये चौकन्ना रहेंगी। कांग्रेस पार्टी भी मायावती को बहुत सीटें देकर राहुल गांधी के मुकाबले उनका कद नहीं बढ़ाना चाहती। क्योंकि इस अवसर का फायदा उठाकर मायावती बसपा को यूपी से बाहर विस्तारित कर सकती हैं, जो कांग्रेस बिल्कुल नहीं चाहेगी। यही कारण है कि मायावती आये दिन कांग्रेस पर निशाना साधती रहती हैं।
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