scriptबेरोजगारी, प्राकृतिक आपदा और सरकारी उपेक्षा के चलते बुंदेलखंड से पलायन कर रहे लोग | bundelkhand palayan report and situation | Patrika News

बेरोजगारी, प्राकृतिक आपदा और सरकारी उपेक्षा के चलते बुंदेलखंड से पलायन कर रहे लोग

locationलखनऊPublished: Sep 11, 2019 03:26:10 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

– भयावह है बुंदेलखंड से पलायन की तस्वीर, गांवों से 60 फीसदी लोग दूसरे शहरों में जाने को मजबूर- पलायन रोकने को सरकारी योजनाएं बुंदेलखंड में हाथी दांत साबित हुईं

bundelkhand palayan report

भयावह है बुंदेलखंड से पलायन की तस्वीर, गांवों से 60 फीसदी लोग दूसरे शहरों में जाने को मजबूर

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में पलायन करने वाले बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं जो मजदूरी के लिए घर से निकले थे, लेकिन आज तक वापस नहीं लौटे। वह कहां हैं और किस हाल में हैं, किसी को कोई खबर भी नहीं है। नियोजन विभाग के 2001 के आंकड़े बताते हैं कि बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर सहित बुंदेलखंड के सात जिलों की करीब 20 फीसदी आबादी बीते दिनों में पलायन कर चुकी है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 26.9 लाख लोगों का पलायन दर्ज किया गया। इसमें बुंदेलखंड की बड़ी संख्या है।
पल्स पोलियो अभियान में लगी स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मार्च 2019 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिसके मुताबिक, बांदा में 21819, चित्रकूट में 8944, महोबा में 5690 और हमीरपुर में 3912 घरों में ताले लगे पाये गये। बुंदेलखंड के किसानों की बेहतरी के काम करने वाली विद्याधाम समिति के सर्वेक्षण में बांदा जिले के नरैनी ब्लॉक की नौ ग्राम पंचायतों की 23167 लोगों की आबादी में 5600 लोग अभी घर नहीं लौटे हैं। नरैनी ब्लॉक के 535 लोगों की आबादी वाले झंडु का पुरवा में 195 लोगों के पलायन की तस्दीक हुई है।
पलायन पर पुरानी सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, बांदा से पलायन करने वाले 3.25 लाख लोगों में मर्दों की संख्या 28,544 ही थी। इसी तरह चित्रकूट से गए 1.75 लाख लोगों में 1.56 लाख महिलाएं थीं। चित्रकूट जिले के मानिकपुर ब्लॉक के कोल बहुल इलाकों में जमुनिहाई, पिपरिया, ऊंचा डीह, मारकुंडी के पूरे-पूरे गांव खाली हो गये हैं। सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि बुंदेलखंड के गावों से करीब गांवों से 60 फीसदी लोग पलायन कर चुके हैं। शेष बचे 40 फीसदी लोगों में बच्चे, बुजर्ग और महिलाएं हैं।
यह भी पढ़ें

मुरादाबाद के बाद पीतल के बर्तनों का मुख्य बाजार था सुलतानपुर का बंधुआकला, खरीदारों की लगी रहती थी होड़



पलायन की वजह
पलायन की स्थिति को समझाते हुए वरिष्ठ पत्रकार शकील अली हाशमी कहते हैं कि बुंदेलखंड में पलायन एक क्रमिक प्रक्रिया है, जो दशकों से लगातार चल रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने यहां का पलायन रोकने के लिए कई योजनाएं चलाईं, जो हाथी का दात ही साबित हुईं। कृषि को लेकर कोई नया प्रयोग नहीं दिख रहा है। पानी की समस्या भी बड़ी है। नतीजन, बेरोजगारी और रोजी-रोटी के जुगाड़ में बुंदेलखंड के लोग महानगरों की ओर पलायन करने लगे। इनमें दिल्ली, गुजरात, मुंबई और हरियाणा प्रमुख रूप से शामिल हैं। शकील अली हाशमी कहते हैं कि सरकारी पैकेजों से कृषि का भला नहीं हो सका और न ही रोजगार के स्रोतों की वैकल्पिक व्यवस्था हो सकी। सूखे के अलावा प्राकृतिक आपदा ने लोगों को बाहर जाने को विवव कर दिया।
दूसरे शहरों में शिफ्ट हो गये लोग
किसानों के हितों के आवाज उठाने वाले किसान नेता शिवनारायण परिहार कहते हैं कि जब खेती से परिवार का गुजारा चलना संभव नहीं है तो यहां के किसान पलायन को मजबूर हुए। वह बताते हैं कि बुंदेलखंड से पलायन करने वाले लोग दो तरह के हैं। इनमें कुछ मौसमी हैं, जो सिर्फ कुछ महीनों के लिए बाहर जाते हैं और कुछ ऐसे लोग हैं जो परिवार सहित दूसर शहरों में शिफ्ट हो गये हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो