लखनऊ

उन्नाव रेप मामला: सीबीआई के पास अब सिर्फ दो ही विकल्प !

फिलहाल पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े होने के अलावा सीबीआई को कोई सबूत हाथ नहीं लगा है

लखनऊApr 19, 2018 / 07:41 pm

Dikshant Sharma

Sengar

लखनऊ। उन्नाव मामले की कड़ी अब सीबीआई के हाथ में आ चुकी है। सीबीआई की टीम कभी आरोपी तो कभी पीड़िता को लेकर माखी गाँव में घूम घूम कर तफ्तीश में जुटी है। लेकिन फिलहाल पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े होने के अलावा सीबीआई को ऐसा कोई सबूत हाथ नहीं लगा है जिससे आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर और अन्य लोगों को दोषी करार दिया जा सके। चलिए आपको विशेषज्ञों की मदद से बताते हैं कि अब सीबीआई के पास आखिर अब क्या विकल्प हैं। इस मामले के कानूनी पहलु और विकल्पों पर हमने बात की पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह और अधिवक्ता (हाई कोर्ट) चन्दन श्रीवास्तव से।
सीबीआई के पास अब सिर्फ दो विकल्प !
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुलदीप सेंगर ने नार्को टेस्ट के लिए हामी भर दी है। उनकी पत्नी ने भी डीजीपी से मिलकर इसकी मांग रखी थी। पूरे मामले में चार अलग एफआईआर दर्ज की गई हैं। सीबीआई की टीम एफआईआर में मौजूद सभी पक्षों से पूछताछ कर रही है लेकिन इससे फिलहाल केस मजबूत होता नहीं दिख रहा। जानकारों की माने तो अब सीबीआई के पास भी सिर्फ दो ही विकल्प हैं। एक नार्को टेस्ट और दूसरा पॉलीग्राफ टेस्ट। ख़ास बात ये भी है कि इन दोनों ही टेस्ट का नतीजा जो भी हो कोर्ट इसे एविडेंस के रूप में नहीं देखता।
आखिर क्यों होता है नार्को / पॉलीग्राफ टेस्ट ?
नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट के नतीजे दोनों ही कोर्ट में सबूत के तौर पर नहीं पेश किये जा सकते। हालांकि इससे सीबीआई को इन्वेस्टीगेशन में मदद मिलती है। जानकार बताते हैं कि आरोपी पर शक होने लेकिन पर्याप्त सबूत न होने के केस में ऐसे टेस्ट मदद करते हैं। इससे इन्वेस्टीगेशन में मौजूद गैप के सवाल आरोपी से पूछे जाते हैं। दरअसल सीबीआई से जुड़े एक अधिकारी ने उनाव से लौटते ही ये साफ़ कर दिया था कि एक साल पहले हुई इस घटना से जुड़े एविडेंस अब जुटाना मुश्किल है।
ये हो सकते थे अहम सबूत
21 जून 2017 को पीड़िता का मेडिकल करवाया गया था लेकिन उसकी रिपोर्ट कभी भी लखनऊ की फॉरेंसिक लैबोरेटरी में नहीं भेजी गई। मामले की जांच कर रहे अधिकारियों न भी जरूरी नहीं समझा कि दुष्कर्म के दौरान पीड़िता द्वारा पहने हुए कपड़े को भी जांच के लिए लखनऊ भेजे दें।
इस केस में ये टेस्ट क्यों है ज़रूरी ?
उन्नाव केस में ये टेस्ट इसलिए भी ज़रूरी माने जा रहे हैं क्योंकि पूरा मामला 10 महीने पुराना है। वारदात स्थल से कोई ठोस सबूत भी नहीं मिले हैं। हालाँकि फॉरेंसिक टीम वारदात स्थल से नमूने लाइ ज़रूर है लेकिन इतने समय बात अपराध के ठोस सबूत मिलने की संभावना कम है। इसी लिए पूरी तफ्तीश के बिंदुओं को जोड़ने के लिए ये टेस्ट अहम सबित होंगे।
सेंगर ठुकरा भी सकते हैं नार्को टेस्ट
अधिवक्ता आईबी सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ़ कर दिया है कि अगर व्यक्ति चाहे तो नार्को टेस्ट ठुकरा भी सकता। यूरोपियन देशों में ये टेस्ट बैन है। शरीर में इंजेक्ट किये जाने वाला केमिकल खाफी खरतनाक साबित हो सकता है। जब तक डिफेंस लॉयर लिखित अनुमति नहीं पेश करता नार्को टेस्ट नहीं किया जा सकता।
क्या होता है नार्को टेस्ट
किसी व्यक्ति के मन से सत्य निकलवाने लिए किया प्रयोग जाता है। बहुत कम किन्तु यह भी संभव है कि नार्को टेस्ट के दौरान भी व्यक्ति सच न बोले। इस टेस्ट में व्यक्ति को ट्रुथ सीरम इंजेक्शन के द्वारा दिया जाता है जिससे व्यक्ति स्वाभविक रूप से बोलता है।
क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट
इस टेस्ट को लाई डिक्टेटर टेस्ट भी कहा जाता है। इसके चलते व्यक्ति के सच-झूठ की परख की जाती है। इस दौरान उसके ब्लड प्रेशर, नब्ज और सांस संबंधी गतिविधियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जांच की शुरूआत में आसान सवाल पूछे जाते हैं ताकि इंसान को घबराहट या बैचेनी से मुक्त करवाया जा सके और फिर धीरे-धीरे उससे मुश्किल सवाल पूछे जाते है।
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