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नवरात्र विशेष: राजधानी का वह मंदिर जहां हर मन्नत के पूरी होने की है मान्यता, इस जल के इस्तेमाल से कई रोगों से मिलती है मुक्ति

locationलखनऊPublished: Apr 14, 2021 10:05:59 am

Submitted by:

Karishma Lalwani

चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2021) की शुरुआत हो चुकी है। प्रदेश में हर जगह इस त्योहार की धूम है। मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खुल चुके हैं।

नवरात्र विशेष: राजधानी का वह मंदिर जहां हर मन्नत के पूरी होने की है मान्यता, इस जल के इस्तेमाल से कई रोगों से मिलती है मुक्ति

नवरात्र विशेष: राजधानी का वह मंदिर जहां हर मन्नत के पूरी होने की है मान्यता, इस जल के इस्तेमाल से कई रोगों से मिलती है मुक्ति

लखनऊ. चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2021) की शुरुआत हो चुकी है। प्रदेश में हर जगह इस त्योहार की धूम है। मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खुल चुके हैं। सभी जगह कोविड प्रोटोकॉल के अनुसार दर्शन कराया जा रहा है। इसी तरह राजधानी लखनऊ के चौक स्थित बड़ी काली मंदिर है, जहां लक्ष्मी और नारायण के स्वरूप में बड़ी काली मां की पूजा होती है। चैत्र नवरात्र पर हर साल भक्तों की भीड़ इस मंदिर में लगती है। मान्यता है कि यहां जो भी भक्त 40 दिन आकर माता के दर्शन करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने करीब 2400 वर्ष पूर्व की थी। इस मंदिर मठ का संचालन बौद्ध गया मठ से होता है।
माता के स्नान किए जल से रोगों से मिलती है मुक्ति

मान्यता है कि बड़ी काली माता को स्नान कराए गए जल के प्रयोग मात्र से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। यह जल मंदिर परिसर में बने एक कुंड में एकत्र होता है। यहां आने वाले भक्त माता के दर्शन करने के बाद कुंड के जल का सेवन करते हैं और आंखों पर लगाते हैं। इस जल को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से शरीर निरोगी बनता है। मंदिर के पुजारी शक्ति दीन अवस्थी के अनुसार, मंदिर में प्रचारी अष्टधातु की लक्ष्मी नारायण की मूर्ति है। इसे नवरात्रि में अष्टमी और नवमी के दिन दर्शन के लिए निकाला जाता है। हालांकि, चार वर्ष में एक बार ही इस मूर्ति के दर्शन करने को मिलता है। इसके बाद यह मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में रख दी जाती है।
मन्नत होती है पूरी

मान्यता है कि अष्टधातु मूर्ति के सामने जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी होती है। कुछ वर्ष पहले तक राज्यपाल या उनका कोई प्रतिनिधि ही इस मूर्ति को मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकालते थे। नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को इस मूर्ति को दर्शन के लिए बाहर निकाला जाता है। बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं।
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