आइए, जानते हैं इस Puja के महत्व और विधि-विधान के बारे में आचार्य डॉ प्रदीप द्विवेदी ने बतायाकि इस बार नहाए-खाए 11 नवंबर को, खरना 12 नवंबर को, सांझ का अर्घ्य 13 नवंबर को और सुबह का अर्घ्य 14 नवंबर को है। नहाए-खाए के दिन महिलाएं और पुरुष नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन चावल, चने की दाल इत्यादि बनाए जाते हैं। इस दिन विशेष रूप से कद्दू की सब्जी और पकवान बनाए जाते हैं इसलिए इस दिन को कदुआ भात भी कहते हैं।
दूसरे दिन यानी खरना के दिन से महिलाएं और पुरुष Chhath का उपवास शुरू करते हैं, इन्हें छठ व्रती कहते हैं। इसी दिन शाम के समय प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) बनाया जाता है। साथ ही फल, सब्जियों से पूजा की जाती है।
Chhath के तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अरगवाले दिन शाम के पूजन की तैयारियां की जाती हैं। Chhath व्रती पूरे दिन निर्जला vrat करते हैं और शाम के पूजन की तैयारियां करते हैं। इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर Puja के बाद अगली सुबह की Puja की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और लाखों लोग एक साथ नदियों में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं।
Chhath का vrat निर्जला vrat है। इसे करनेवाले लोग इस vrat में 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं। बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में Chhath आस्था व भक्ति के साथ मनाई जाती है।
जानें, कब बन रहे हैं कौन-से योग आचार्य डॉ प्रदीप द्विवेदी ने कहाकि पंचांग की गणना के अनुसार, इस बार Chhath पर्व पर कई दुर्लभ शुभ संयोग बन रहे हैं जो शुभ फलदायी और समृद्धिदायक हैं। रविवार भगवान सूर्य का दिन माना जाता है इस दिन से छठ आरंभ हो रहा है। 11 नवंबर रविवार को नहाय-खाए पर सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। सांझ के अर्घ्यवाले दिन यानी 13 नवंबर को अमृत योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है।
Chhath के अंतिम दिन अर्थात प्रात:कालीन अर्घ्य पर बुधवार 14 नवंबर को सुबह के समय छत्र योग का संयोग बन रहा है। इस योग को धन और समृद्धिदायक माना गया है। हिंदू धर्म में सूर्य को जल देने का बहुत महत्व है और chhath puja के पावन पर्व पर ढलते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से कई पापों का नाश होता है।