54 फीसदी युवतियों में एनीमिया देश में बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून पहली बार 1929 में पारित किया गया था। इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन किया गया। बाल विवाह जैसी कुप्रथा का उन्मूलन सतत विकास लक्ष्य-5 (SDG-5) का हिस्सा है। यह लैंगिक समानता प्राप्त करने व सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने से संबंधित है। सर्वे में यह भी खुलासा हुआ है कि कम उम्र में शादी होने के चलते युवतियों को कई तरह की दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। 15 से 19 साल की उम्र में मां बनने वाली 54 फीसदी युवतियों में एनीमिया पाया गया है। 15 वर्ष से कम आयु की लड़कियों में मातृ मृत्यु का जोखिम अधिक रहता है। इसके अलावा बाल वधुओं पर हृदयाघात, मधुमेह, कैंसर, स्ट्रोक आदि का खतरा 23 प्रतिशत बढ़ जाता है। साथ ही उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
30 फीसदी लड़कों की शादी 21 की आयु से पहले सर्वे के मुताबिक प्रदेश में लगभग 30 फीसदी लड़कों की शादी 21 साल से पहले हो जाती है। राज्य में सिर्फ केवल 27.5 फीसदी लड़के और 24.6 फीसदी लड़कियों को यौन और प्रजनन संबंधी जानकारी हैं। सर्वे में यह बात भी सामने आई कि आर्थिक और स्वास्थ्य से जुड़े मामले में सिर्फ 59.6 फीसदी लोगों से राय ली जाती है। नई जनसंख्या नीति में महिलाओं को जागरूक और स्वावलंबी बनाने की तैयारी है। इसके जरिए यह प्रयास किया जाएगा कि विभिन्न मामलों में वर्ष 2026 तक 65 फीसदी और वर्ष 2030 तक 75 फीसदी महिलाएं अपनी राय देने लगें।
तेजी से घट रहा है प्रदेश में लिंगानुपात, पहुंचा 902 पर प्रदेश सरकार का लक्ष्य है कि बाल लिंगानुपात 2026 तक 905 और 2030 तक 919 तक पहुंच जाए। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान समय में प्रदेश में बाल लिंगानुपात तेज से घट रहा है। बाल लिंगानुपात घटकर 902 पर आ गया है। परिवार कल्याण महानिदेशक डॉ. लिली सिंह कहती हैं कि जनसंख्या नीति गारी कर ग्रामीण इलाकों पर अधिक फोकस दिया जा रहा है। इसके लिए परिवार कल्याण महानिदेशालय ने ग्रामीण इलाके के अल्ट्रासाउंड केंद्रों की मॉनिटरिंग बढ़ाने की रणनीति बनाई है। बालिकाओं के इलाज व देखभाल पर भी फोकस होगा। साथ ही कॉलेजों और विभिन्न समुदायों में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। नई जनसंख्या नीति के प्रावधानों का असर पांच साल बाद दिखने लगेगा।