सूत्रों की मानें तो ये वे सीटें हैं जहां से कांग्रेस की इस बार जीत पक्की रहेगी। अमेठी और रायबरेली दोनों सीटों पर कांग्रेस ने 2014 के मोदी लहर में भी अपना परचम लहराया था। वहीं पडरौना से कांग्रेस के पूर्व विधायक और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। 2014 में वे भाजपा के राजेश पांडेय उर्फ गुड्डू से चुनाव हार गए थे। इस बार आरपीएन सिंह की जीत पक्की मानी जा रही है। वहीं धौरहरा लोकसभा सीट से जितिन प्रसाद की जीत भी पक्की मानी जा रही है।
अमेठी
कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहां से कांग्रेस को हराना आसान नहीं है। पिछली बार यहां से भाजपा ने स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा था, लेकिन वह राहुल गांधी से चुनाव हार गई थीं। वहीं इस बार कांग्रेस का हौसला बुलंद है। हाल ही में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत का असर भी यहां देखा जा सकता है। वहीं भाजपा सत्ता में है तो सत्ता पक्ष से नाराजगी का भी कांग्रेस को फायदा मिलेगा। सब मिला कर यह कहा जा सकता है कि इस बार यहां से कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा।
रायबरेली
रायबरेली से सोनिया गांधी लगातार सांसद चुनी जाती रही हैं। मोदी लहर में भी उन्होंने जीत का परचम लहराया। अब 2019 में कांग्रेस फिर से मजबूती के साथ यहां से चुनाव लडऩे जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपी चेयरपर्सन सोनिया गांधी 23 जनवरी को अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में आएंगे। ऐसे में चुनावी सरगर्मी भी तेज हो गई है।
कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहां से कांग्रेस को हराना आसान नहीं है। पिछली बार यहां से भाजपा ने स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा था, लेकिन वह राहुल गांधी से चुनाव हार गई थीं। वहीं इस बार कांग्रेस का हौसला बुलंद है। हाल ही में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत का असर भी यहां देखा जा सकता है। वहीं भाजपा सत्ता में है तो सत्ता पक्ष से नाराजगी का भी कांग्रेस को फायदा मिलेगा। सब मिला कर यह कहा जा सकता है कि इस बार यहां से कांग्रेस का पलड़ा भारी रहेगा।
रायबरेली
रायबरेली से सोनिया गांधी लगातार सांसद चुनी जाती रही हैं। मोदी लहर में भी उन्होंने जीत का परचम लहराया। अब 2019 में कांग्रेस फिर से मजबूती के साथ यहां से चुनाव लडऩे जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपी चेयरपर्सन सोनिया गांधी 23 जनवरी को अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में आएंगे। ऐसे में चुनावी सरगर्मी भी तेज हो गई है।
पडरौना
इस सीट से आरपीएन ङ्क्षसह विधायक और सांसद रह चुके हैं, लेकिन 2014 में उन्हें मोदी लहर में हार का सामना करना पड़ा था। 2019 में वे फिर से अपनी किस्मत आजमाएंगे। माना जा रहा है कि इस बार उनकी जीत पक्की मानी जा रही है, लेकिन चुनाव में हार-जीत के बारे में अभी कहना मुश्किल होगा।
इस सीट से आरपीएन ङ्क्षसह विधायक और सांसद रह चुके हैं, लेकिन 2014 में उन्हें मोदी लहर में हार का सामना करना पड़ा था। 2019 में वे फिर से अपनी किस्मत आजमाएंगे। माना जा रहा है कि इस बार उनकी जीत पक्की मानी जा रही है, लेकिन चुनाव में हार-जीत के बारे में अभी कहना मुश्किल होगा।
धौरहरा
इस यह सीट 2009 में कांग्रेस के पास थी। यहां से जितिन प्रसाद ने जीत हासिल की थी, लेकिन वे 2014 के मोदी लहर में चुनाव हार गए थे। वे हार के बाद भी लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं। इस बार उनकी जीत पक्की मानी जा रही है। कांग्रेस की पोजीशन तीन राज्यों में जीत के बाद यूपी में भी काफी हद तक अच्छी रहने की उम्मीद है। जितिन प्रसाद की जीत पक्की मानी जा रही है।
सहारनपुर
इस बार इस सीट पर कांग्रेस की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद भी कांग्रेस की यहां पर स्थिति हार के बाद भी सही थी। यूपी में सबसे कम अंतर सहारनपुर सीट पर था। यहां कांग्रेस के इमरान मसूद 65 हजार वोटों से हारे थे। इमरान मसूद पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सदस्य रहे राशिद मसूद के भतीजे हैं। इस बार इमरान मसूद की जीत यहां से पक्की मानी जा रही है।
इसके अलावा भी यूपी की कानपुर, झांसी, लखीमपुर-खीरी, बहराइच, फैजाबाद समेत कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति मजबूत मानी जा रही है।
सबसे ख़स्ता हालत
2014 के लोकसभा चुनाव में सूबे में कांग्रेस की हालत 1998 के बाद सबसे ख़स्ता रही। 2014 में कांग्रेस ने यूपी की 80 में से 66 सीटों पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। कांग्रेस कुल 7.5 प्रतिशत वोटों के साथ केवल दो लोकसभा सीटें जीत पाई थी। रायबरेली से सोनिया गांधी 3,52,713 और अमेठी में राहुल गांधी स्मृति ईरानी से सिर्फ 1,07,903 वोटों से जीत पाए थे। इनके अलावा 6 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी, लेकिन इन सभी सीटों पर हार जीत का बड़ा अंतर था। सबसे कम अंतर सहारनपुर सीट पर था। यहां इमरान मसूद 65 हजार वोटों से हारे थे। उसके बाद कुशीनगर लोकसभा सीट पर पूर्व मंत्री आरपीएन सिंह 85,540 वोट से हारे थे।
इस यह सीट 2009 में कांग्रेस के पास थी। यहां से जितिन प्रसाद ने जीत हासिल की थी, लेकिन वे 2014 के मोदी लहर में चुनाव हार गए थे। वे हार के बाद भी लगातार अपने क्षेत्र में सक्रिय रहते हैं। इस बार उनकी जीत पक्की मानी जा रही है। कांग्रेस की पोजीशन तीन राज्यों में जीत के बाद यूपी में भी काफी हद तक अच्छी रहने की उम्मीद है। जितिन प्रसाद की जीत पक्की मानी जा रही है।
सहारनपुर
इस बार इस सीट पर कांग्रेस की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद भी कांग्रेस की यहां पर स्थिति हार के बाद भी सही थी। यूपी में सबसे कम अंतर सहारनपुर सीट पर था। यहां कांग्रेस के इमरान मसूद 65 हजार वोटों से हारे थे। इमरान मसूद पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सदस्य रहे राशिद मसूद के भतीजे हैं। इस बार इमरान मसूद की जीत यहां से पक्की मानी जा रही है।
इसके अलावा भी यूपी की कानपुर, झांसी, लखीमपुर-खीरी, बहराइच, फैजाबाद समेत कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति मजबूत मानी जा रही है।
सबसे ख़स्ता हालत
2014 के लोकसभा चुनाव में सूबे में कांग्रेस की हालत 1998 के बाद सबसे ख़स्ता रही। 2014 में कांग्रेस ने यूपी की 80 में से 66 सीटों पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। कांग्रेस कुल 7.5 प्रतिशत वोटों के साथ केवल दो लोकसभा सीटें जीत पाई थी। रायबरेली से सोनिया गांधी 3,52,713 और अमेठी में राहुल गांधी स्मृति ईरानी से सिर्फ 1,07,903 वोटों से जीत पाए थे। इनके अलावा 6 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी, लेकिन इन सभी सीटों पर हार जीत का बड़ा अंतर था। सबसे कम अंतर सहारनपुर सीट पर था। यहां इमरान मसूद 65 हजार वोटों से हारे थे। उसके बाद कुशीनगर लोकसभा सीट पर पूर्व मंत्री आरपीएन सिंह 85,540 वोट से हारे थे।