सीडीआरआई के निदेशक प्रो. तपस कुंदू के मुताबिक एमओयू के तहत किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी पॉजिटिव मरीजों के सैम्पल से आरएनए अलग करके संस्थान को देंगी। इसके बाद हम उसकी सीक्वेंसिंग कर प्रभावी दवा तैयार करने की दिशा में काम करेंगे। वहीं केजीएमयू के कुलपति डॉ एम एलबी भट्ट ने बताया कि जिस तरह से कोरोना वायरस के प्रकोप से पूरी दुनिया में तबाही मची है। ऐसे में दोनों संस्थानों का संयुक्त प्रयास बीमारी से लड़ने में सकारात्मक प्रभाव डालेगा और इस बीमारी की उचित दवा बनाने में कारगर साबित होगा।
सीक्वेंसिंग सिस्टम विकसित
तपस कुंदू ने बताया कि संस्थान ने लक्ष्य आधारित सीक्वेंसिंग सिस्टम विकसित किया है। जिसमें वैज्ञानिकों ने सार्स 2 के विरुद्ध ड्रग टारगेट्स के लिए अणु की लाइब्रेरी तैयार की है। इन सभी अणुओं को कंप्यूटर की मदद से इन सलिको अप्रोच के साथ परखा जा रहा है। इससे वायरस के आरएनए के जीन सीक्वेंस के वैरिएशन को समझने में मदद मिलेगी। वायरस के प्रोटीन के साथ इन अणुओं को सीमित किया जाएगा। जो मॉलीक्यूल वायरस के खिलाफ प्रभावी होगा, वह उसके जीन सीक्वेंसिंग को रोक देगा। इससे हमें पता चल जाएगा कि कौन सा मॉलीक्यूल दवा के लिए कारगर है।
अणु लाइब्रेरी भी तैयार
सीडीआरआई के मीडिया प्रभारी डॉ संजीव यादव ने बताया कि संस्थान लक्ष्य आधारित सीक्वेंसिंग सिस्टम पर फोकस करेगा। जिसमें साइंटिस्ट ने कोविड सार्स-2 के विरुद्ध ड्रग टारगेट्स के लिए मॉलीक्यूल्स (अणुओं) की लाइब्रेरी तैयार की है। इनमें ड्रग रिपर्पजिंग से जुड़े तमाम मॉलीक्यूल का डेटा है जिसे कोविड के खिलाफ दवा के रूप में परखा जा सकता है। संस्थान की ओर से प्रो. आर रविशंकर साइंटिस्ट की टीम को लीड करेंगे। वहीं केजीएमू से डॉ. अमिता जैन को इस प्रॉजेक्ट का हेड बनाया गया है।
कोरोना के प्रकार का भी चलेगा पता
सीडीआरआई के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि आरएनए सैम्पल की सीक्वेंसिंग के अध्ययन से कोरोना वायरस का कौन सा प्रकार भारत के लोगों को ज्यादा प्रभावित कर रहा है, इसका भी पता चल जाएगा। कई शोधों से यह पता चला है कि कोरोना वायरस के आठ अलग-अलग प्रकार भारतीयों को प्रभावित कर रहे हैं। कोरोना वायरस के प्रकार की जानकारी से दवा को और प्रभावी बनाए जाने में मदद मिलेगी। सीडीआरआई ने वायरल सीक्वेंस के म्युटेशन से संबंधित प्रभावों की निगरानी के लिए टीम भी बना दी है।