123 साल पहले भारत में बना कानून आज भी प्रभावी है। और इस घातक कानून के जरिये भी कोरोना को हराया जा सकता है। दरअसल, यह कानून महामारी को फैलने से रोकने के उद्देश्य से जुड़ा हुआ है। कर्नाटक और केरल समेत कई अन्य राज्यों ने कोरोना को महामारी घोषित होने के बाद अधिसूचना जारी कर धारा 188 लागू कर दी है। महामारी रोक कानून 1897 का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा शिक्षण संस्थान को बंद करने, किसी इलाके में आवाजाही रोकने और मरीज को उसके घर या अस्पताल में क्वारेंटाइन करने के लिए किया जाता है। इसी कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन या सार्वजनिक स्थान से पकड़कर बिना कोई कारण बताये अस्पताल भेजा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति अस्पताल जाने से इनकार करता है या फिर सभी से अलग रहने से मना करता है तो महामारी रोक कानून के उल्लंघन करने पर उस व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। धारा 188 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर किसी व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा से खिलवाड़ करता है तो उसे कम से कम छह महीने की जेल और एक हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। इसी कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति अस्पताल या कहीं और से भाग जाएगा तो तब उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाती है। हालांकि, महामारी कानून जब बना था, तब लोग केवल समुद्री यात्रा ही करते थे। अब जब तमाम साधन विकसित आ गये हैं तो इस कानून में बदलाव की जरूरत है।
महामारी कानून के अलावा यह भी विकल्प
महामारी कानून के अलावा भारतीय दंड संहिता में कुछ अन्य प्रावधान भी किये गये हैं, जिसके तहत किसी व्यक्ति के जीवन के जोखिम में डालने पर कार्रवाई की जा सकती है। इसी के तहत आगरा में एक रेलवे अधिकारी पर महामारी फैलाने का पहला केस 15 मार्च को दर्ज किया गया। आजादी के बाद संभवतया यह पहला मामला है जिसमें अपर मुख्य चिकित्साअधिकारी की तहरीर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 269 और 270 के तहत महामारी फैलाने के आरोप में केस दर्ज हुआ है। अगर यह दोष सही पाया गया तो रेलवे अधिकारी को कम से कम दो साल की सजा होगी। आइए जानते हैं कि दरअसल धारा 269 और 270 में है क्या?
महामारी कानून के अलावा भारतीय दंड संहिता में कुछ अन्य प्रावधान भी किये गये हैं, जिसके तहत किसी व्यक्ति के जीवन के जोखिम में डालने पर कार्रवाई की जा सकती है। इसी के तहत आगरा में एक रेलवे अधिकारी पर महामारी फैलाने का पहला केस 15 मार्च को दर्ज किया गया। आजादी के बाद संभवतया यह पहला मामला है जिसमें अपर मुख्य चिकित्साअधिकारी की तहरीर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 269 और 270 के तहत महामारी फैलाने के आरोप में केस दर्ज हुआ है। अगर यह दोष सही पाया गया तो रेलवे अधिकारी को कम से कम दो साल की सजा होगी। आइए जानते हैं कि दरअसल धारा 269 और 270 में है क्या?
आईपीसी की धारा 269
भारतीय दंड संहिता की धारा कहती है, 269 के अनुसार जो कोई विधि विरुद्ध रूप से या उपेक्षा से ऐसा कोई कार्य करेगा, जिससे कि और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रमण फैलना संभावित है। वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा कहती है, 269 के अनुसार जो कोई विधि विरुद्ध रूप से या उपेक्षा से ऐसा कोई कार्य करेगा, जिससे कि और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रमण फैलना संभावित है। वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
आईपीसी की धारा 270
भारतीय दंड संहिता की धारा 270 के मुताबिक, जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोक का संक्रमण फैलना संभावित है। इस अपराध में दो वर्ष की सजा या फिर दंड या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह संज्ञेय अपराध है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 270 के मुताबिक, जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि और जिससे वह जानता या विश्वास करने का कारण रखता हो कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोक का संक्रमण फैलना संभावित है। इस अपराध में दो वर्ष की सजा या फिर दंड या फिर दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह संज्ञेय अपराध है।