यह था मामला-
दरअसल 24 अक्टूबर 2008 को हुई इस कार्रवाई के दौरान एसआई ने स्थानीय ग्रामीणों को जब्त किए गए पशुओं को सौंप कर उनकी देखभाल करने के निर्देश दिए थे। इस दौरान 116 भैसें गांव के लोगों को दी गई थीं। इस कार्रवाई के संबंध में मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के अनुसार 337 पशु बरामद हुए, जबकि पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में केवल 116 पशुओं के जब्त होने की बात कही थी। यह तथ्य उजागर होने पर उन्नाव के तत्कालीन एसपी पीके मिश्रा ने सफीपुर क्षेत्र के सीओ को इस मामले में गहनता से जांच करने के आदेश दिए थे। जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने गोवध अधिनियम समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज किया था।
दरअसल 24 अक्टूबर 2008 को हुई इस कार्रवाई के दौरान एसआई ने स्थानीय ग्रामीणों को जब्त किए गए पशुओं को सौंप कर उनकी देखभाल करने के निर्देश दिए थे। इस दौरान 116 भैसें गांव के लोगों को दी गई थीं। इस कार्रवाई के संबंध में मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के अनुसार 337 पशु बरामद हुए, जबकि पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में केवल 116 पशुओं के जब्त होने की बात कही थी। यह तथ्य उजागर होने पर उन्नाव के तत्कालीन एसपी पीके मिश्रा ने सफीपुर क्षेत्र के सीओ को इस मामले में गहनता से जांच करने के आदेश दिए थे। जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने गोवध अधिनियम समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज किया था।
2011 में ऐंटी करप्शन ऑर्गनाइजेशन को सौंप गया केस- इस मामले में नया मोड़ तब आया जब मेरठ के एक निवासी एल अहमद ने कोर्ट में एक केस दर्ज कराया जिसमें उसने 337 भैंसों के लापता होने की बात कही। अदालत ने यूपी सरकार को मामले की जांच के लिए विशेष जांच टीम का गठन कराया। लेकिन गठित टीम भी इन लापता पशुओं का कोई सुराग नहीं लगा पाई, जिसके बाद 2011 में केस को अदालत के आदेश पर ऐंटी करप्शन ऑर्गनाइजेशन को सौंप दिया गया।
फिर दायर की गई चार्जशीट- मामला आगे बढ़ा और जांच करते हुए निरीक्षक एससी तिवारी ने साल 2013 में माखी थाने के एसओ अनिरुद्ध सिंह, एसआई रियाज अहमद समेत 6 लोगों को पशुओं के लापता होने का दोषी पाया। कार्रवाई में लापरवाही का आरोपी बताते हुए 2015 में अदालत में एक चार्जशीट दायर की गई। पुलिसकर्मियों पर लापता भैंसों को स्लॉटर हाउस में भेजने का भी आरोप लगा। अब इस मामले में अदालत ने इन सभी को दोषी करार देते हुए सजा देने का फैसला किया है।