इस रिपोर्ट में महामारी को दो प्रमुख भागों के माध्यम से प्रकाश डाला गया है- वैश्विक और राष्ट्रीय प्रतिक्रिया। वैश्विक प्रतिक्रिया में एक देश से दूसरे देश के बीच तुलनात्मक अध्ययन, रोकथाम और प्रबंधन की रणनीति, पूरी दुनिया से कोविड-19 की कहानियों का एक केलिडोस्कोप, डब्ल्यूएचओ सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका और उनकी प्रतिक्रिया, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महामारी का असर, सामाजिक परिणाम, लोकतंत्र को खतरे, टेस्टिंग की वैश्विक स्थिति और दुनिया भर में दवाओं व टीकों का विकास शामिल है।
रिपोर्ट के दूसरे आधे हिस्से में अपने गृह देश भारत में महामारी के किस्सों को समाहित किया गया है। राष्ट्रीय़ प्रतिक्रिया समग्र स्थितिजन्य विश्लेशण से शुरू होता है और उसके बाद महामारी को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया, आईएमसीआर, आईडीएसपी, एनडीएमए और अर्ध सैनिक बलों जैसे संगठनों की कोविड-19 के रोकथाम में निभाई गई भूमिका, भारत में टेस्टिंग की स्थिति, आयुर्वेद की भूमिका, भारत की अर्थव्यवस्था पर असर, मानसिक स्वास्थ्य संकट, सीखने के परिणामों पर असर, कोविड-19 और मादक द्रव्यों के सेवन में सह संबंध, कोविड-19 के दौरान अपनाई गई टेलीमेडिसिन की समीक्षा, समुदाय आधारित जमीनी तैयारियों की जरूरत और राज्यों की कुछ झलकियां इसमें शामिल की गई हैं। कुल मिलाकर रिपोर्ट में कोविड-19 की गंभीर हकीकतों को देखते हुए अनुभवों से मिली सीख को पकड़ने की कवायद की गई है। रिपोर्ट में विशेष उल्लेख किया गया है कि उभरते हुए स्वास्थ्य आपात की निगरानी और बहुत पहले इसकी सूचना देने के लिए एक मजबूत वैश्विक मौसम स्टेशन की जरूरत है।
मौजूदा संकट एक मजबूत कानूनी ढांचे/सुधार के सृजन की जरूरत पर जोर दे रहा है, जिसे प्राचीन महामारी रोग अधिनियम, 1897 की जगह लागू किया जा सके। इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य आपासकाल से प्रभावी तरीके से निपटने में मदद मिल ससेगी, जब महामारी कोविड-19 के स्तर की हो। इस स्थित में मसौदा राष्ट्यी स्वास्थ्य विधेयक (2009) उम्मीद की एक किरण है, जिसमें स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल के सभी पहलुओं पर जोर दिया गया है, जिसमें “सबके लिए स्वास्थ्य” के लक्ष्य के मुताबिक विभिन्न तत्व शामिल हैं। यह भी अहम है कि सरकार को स्वास्थ्य का अधिकार देना चाहिए और इसे जीवन के मूल अधिकार के अटूट हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए।
कोविड-19 महामारी के दौर में टेलीमेड़िसिन और वर्चुअल केयर मरीजों की देखभाल का एक महत्त्वपूर्ण साधन बनकर उभरा है, जब स्वास्थ्यकर्मियों और मरीजों को सुरक्षित रखना है। इस तरह से यह जरूरी है कि टेलीमेडिसिन को एक समान रूप से उच्च नैतिक मानदंडों के अनुरूप लागू किया जाए जिससे सभी व्यक्तियों की गरिमा बनाए रखने के साथ शिक्षा, भाषा, भौगोलिक क्षेत्र, भौतिक एवं मानसिक सक्षमता, उम्र, ***** इत्यादि स्वास्थ्य देखभाल की राह में बाधा न बनने पाए।
हार्वर्ड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ में वैश्विक स्वास्थ्य एवं जनसंख्या विभाग के प्रोफेसर विक्रम पटेल ने कहा अगर हम महामारी के कठिन चरण के आगे की स्थिति देखें तो विश्व को एक आर्थिक मंदी से निपटने की जरूरत होगी, जो किसी अन्य चीज की तुलना में सबसे अहम है। आर्थिक मंदी के असर के रूप में मानसिक स्वास्थ्य देखभाव का बोझ बढ़ने, देशों में असमानता की खाईं चौड़ी होने, महामारी के भविष्य की लहर के बारे में अनिश्चितता और शारीरिक दूरी की नीतियां जारी रहने कीसंभावना नजर आ रही है। गरीबी, असमानता और कमजोर मानसिक स्वास्थ्य के बीच मजबूत संबंध को देखते हुए यह आश्चर्यजनक नहीं है।