राज्यपाल ने कहा कि एक अच्छी शिक्षा व्यवस्था नये भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण है। वैश्वीकरण के आज के युग में शिक्षण संस्थानों के समक्ष स्वयं को वैश्विक स्तर पर स्थापित एवं प्रस्तुत करने की बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि उच्चतर शिक्षा में गुणवत्ता, उत्कृष्टता के साथ-साथ प्रासंगिकता का भी मूल्य बढ़ा है। वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षण संस्थानों की मूल्यांकन हेतु क्यू0एस0 रैंकिंग, टाइम्स रैंकिंग तथा इसी प्रकार की कई अन्य रैंकिंग इकाइयों द्वारा मूल्यांकन की व्यवस्थाएं दी गई हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्वायत्त संस्था ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद’ की स्थापना उच्च शिक्षा के भारतीय संस्थानों को निर्धारित मानदंडों के आधार पर मूल्यांकन एवं प्रत्यायन की प्रक्रिया के माध्यम से उनका अंतर-निरीक्षण कर मूल्यांकन की सेवा प्रदान करने के लिए ही हुआ है।
आनंदीबेन पटेल ने कहा कि नैक संस्था शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान, नवाचार तथा नव-पद्धतियों को प्रोत्साहित करके स्व-मूल्यांकन एवं जवाबदेही के आधार पर बेहतर शैक्षणिक परिवेश को प्रोत्साहित करती है। इसका लाभ विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों को भी मिलता है, जिससे वे पुनः निरीक्षण प्रक्रिया के माध्यम से अपनी दुर्बलताएं एवं अवसरों को पहचान सकते हैं एवं नई तथा आधुनिक पद्धति के अध्यापन को अपने संस्थानों में अपना सकते हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर देश की मुख्यधारा से जोड़ना हम सभी का कर्तव्य है। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा नीति के बदले कलेवर को समग्रता में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब उच्च शिक्षण संस्थान अपना मूल्यांकन करता है तो वह राष्ट्रीय विकास में योगदान देता है।
राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा के लिए यह जरूरी नहीं है कि सब कुछ क्लास रूम में ही हो। प्रयोगशाला को कक्षा और कक्षा को प्रयोगशाला में परिवर्तित करने का समय है। शिक्षकों की स्किल को बढ़ाने के लिए लगातार काम करने का समय है। उन्होंने कहा कि अध्यापक और अध्यापिकाओं को और संवेदनशील, उत्साही एवं विद्यानुरागी बनाने के लिये उनके प्रशिक्षण की सतत् आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें पढ़ाने और शिक्षा शास्त्र के नये तरीके गढ़ने पर विचार करना होगा। साथ ही शिक्षकों के प्रशिक्षण में व्यापक सुधार के लिए शिक्षक-प्रशिक्षण और सभी शिक्षा कार्यक्रमों को सभी स्कूलों चाहे वह सरकारी हों या गैर सरकारी सभी को जोड़ने की कोशिश करनी होगी।
राज्यपाल ने कहा कि परम्पराओं, संस्कृतियों और भाषाओं की विविधता को ध्यान में रखते हुए तेजी से बदलते समाज की जरूरतों के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध एवं अनुसंधान भी अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि शोध का समाज के व्यापक हित चिंतन में प्रयोग हो इसके लिए संस्थाएं सिर्फ पब्लिकेशन मात्र के लिए शोध न करें, बल्कि समाज के मूल विषयों पर भी शोध करें, जिसका फायदा समाज को मिले।