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दलाई लामा के निजी चिकित्सक डॉ.यशी ढोंढेन का 93 वर्ष की उम्र में निधन, नब्ज पकड़ते ही बता देते थे बीमारी और इलाज

locationलखनऊPublished: Nov 26, 2019 03:53:28 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

तिब्ब और सिद्धि चिकित्सा पद्धति से लाइलाज कैंसर को भी ठीक कर देने वाले सुप्रसिद्ध डॉक्टर यशी ढोंढेन नहीं रहे।

दलाई लामा के निजी चिकित्सक डॉ.यशी ढोंढेन का 93 वर्ष की उम्र में निधन, नब्ज पकड़ते ही बता थे बीमारी और इलाज

दलाई लामा के निजी चिकित्सक डॉ.यशी ढोंढेन का 93 वर्ष की उम्र में निधन, नब्ज पकड़ते ही बता थे बीमारी और इलाज

स्मृति शेष/हेमेन्द्र तोमर, वरिष्ठ पत्रकार

लखनऊ. तिब्ब और सिद्धि चिकित्सा पद्धति से लाइलाज कैंसर को भी ठीक कर देने वाले सुप्रसिद्ध डॉक्टर यशी ढोंढेन नहीं रहे। उनके बारे में यह धारणा थी जहां मेडिकल साइंस भी जवाब दे जाती है वहां डॉ यशी की जड़ी बूटी काम आती है और असाध्य कैंसर जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है। मेरी मां का निधर कैंसर से ही हुआ। इस बीमारी की वजह से मुंबई के एक वैद्य औैर हिमाचल केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री के मुंह से डॉक्टर ढोंढेंन के बारे में सुना। त्रयम्बकेश्वर के पास तूपादेवी में वैद्य फर्शी वाले बाबा के आश्रम में भी किसी ने इनका नाम सुझाया था। हालांकि, मां को इलाज के लिए डॉक्टर ढोंढेन के पास कभी ले नहीं जा सका। बावजूद इसके डॉ. ढोंढेंन के बारे में जानने की जिज्ञासा हमेशाा से बनी रही। यह गत वर्ष तब शांत हुई, जब तिब्बत की निर्वासित सरकार के आमंत्रण पर लखनऊ के चार पत्रकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के मैक्लोडगंज में तिब्बती संघर्ष पर अध्ययन करने के लिए गए।

हिमाचल पहुंचने के बाद भी डॉ. ढोंढेंन से मिलने की कसक बड़ी मुश्किल से पूरी हुई। तिब्बत प्रशासन के अधिकारी कर्मा तगांग ने डॉक्टर साहब से मिलवाने के तमाम प्रयास किए लेकिन वे सफल नहीं हो सके। फिर तिब्बत की निर्वासित सरकार की संसद के उपसभापति आचार्य येशी फुंगत्सुक के अनुरोध पर डॉक्टर यशी ढोंढेन से बड़ी मुश्किल से मुलाकात का वक्त दिया। वह भी सिर्फ पांच मिनट के लिए, क्योंकि वह बिना अपॉइंटमेंट के किसी मरीज को देखते नहीं थे। इनकी छोटी सी क्लीनिक में कम से कम डेढ़ महीने की वेटिंग होती थी।

बहरहाल, सुबह दस बजे मिलने का वक्त तय हुआ। हम 4 पत्रकार व कर्मा तगांग एक मीटिंग रूम में मिलने पहुंचे। कक्ष में 1960 व 70 के दशक के लगे छाया चित्रों को देखने से पता चला, अमेरिका व पश्चिम के अन्य देशों के असंख्य शोधकर्ता और चिकित्सक भी यशी ढोंढेन पास आते रहे हैं। वहां के अखबारों में इनकी चमत्कारिक चिकित्सा पद्धति के बारे में प्रकाशन भी तभी से होता रहा है। कुछ ही देर के इंतजार के बाद एक छोटे से कमरे में डॉक्टर ढोंढेंन के सामने मुखातिब होने का मौका मिला। पारंपरिक तिब्बती वेशभूषा के ऊपर डॉक्टरों वाला सफेद एप्रन पहने डॉ ढोंढेंन को देखते ही लगा वह 5 फीट से कम नहीं थे। चेहरा रफ़। उस पर कोई भाव नहीं। बलिष्ठ इतने दिखे लगा जैसे दारा सिंह जैसे हष्ट पुष्ट और विशाल शरीर के स्वामी के सामने बैठे हैं। डॉ. ढोंढेंन एक आम तिब्बती शारीरिक गठन से औसत रूप से बड़े कद के थे। बैठते ही बिना कुछ बोले, उन्होंने एक हाथ पकड़ा और अपने सहायक को तिब्बती भाषा में कुछ बोला।

इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाता कि उनके सहायक ने हिंदी में बताया, आपको एलर्जी और अस्थमा है। मैं हतप्रभ था। हाथ पकडऩे से लेकर सहायक के मुंह खोलने के बीच कुल 15 सेकेंड से भी कम का वक्त लगा होगा। और रोग पकड़ में आ गया। जबकि, दशकों पूर्व मेरी इसी बीमारी को पकडऩे में केजीएमयू के चेस्ट डिपार्टमेंट ने दो माह लगा दिए थे। वह भी तब, जब ढेर सारी खून, एक्सरे व कागजी जांचों का पुलिंदा उनके सामने था।

डॉक्टर ढोंढेन को पिछले वर्ष मिला था पद्मश्री अवार्ड

क्लीनिक में मेरे सहयात्री पत्रकारों ने भी खुद की चिकित्सीय परामर्श लेने की मंशा जाहिर की, लेकिन डॉ ढोंढेंन ने साफ मना कर दिया। तिब्बती भाषा में वह कुछ बुदबुदाए। जिसका हिंदी तर्जुमा कर्मा तगांग ने किया। उन्होंने बताया-वह कह रहे थे कि आचार्य ने केवल एक ही आदमी के बारे में कहा था। यानी ढोंढेंन अनुशासन और अपनी जुबान के पक्के व्यक्ति थे। 14वें दलाई लामा के निजी डॉक्टर ढोंढेंन ज़्यादा उम्र होने की वजह से कहीं आ जा नहीं पाते थे। जिस तरह दलाई लामा तिब्बत के चीन के कब्जे में आने के बाद सब कुछ छोडकऱ भारत आए, उसी तरह वे भी अपना सब कुछ लुटा कर तिब्बत से भारत आए थे। वे तिब्बत की पारंपरिक सिद्धि चिकित्सा पद्धति के जानकार थे। उन्होंने किससे यह विद्या सीखी, नहीं मालूम। लेकिन असाध्य रोगों की चिकित्सा के लिए आज भी जड़ी बूटियों वाली दवा के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं। पिछले साल ही डॉक्टर ढोंढेन को पद्मश्री मिला था। तिब्बती चिकित्सा पद्धति यानी तिब्ब को आयुष के साथ जोड़ा गया है। डॉ. ढोंढेंन के न रहने से बहुत से लोगों का जीवन असुरक्षित सा हो गया है। आखिरकार, कठिन रोगों को खत्म करने वाला इतना सरल और सफल डॉक्टर अब कहां मिलेगा।

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