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Devathana Eakadashi Tulsi vivah 2018: इस तरह से वृंदा बन गई तुलसी, जानिए पूरी कथा

locationलखनऊPublished: Nov 19, 2018 05:14:32 pm

Submitted by:

Ashish Pandey

वृंदा के व्रत का प्रभाव इतना था कि देवता भी जलंधर को नहीं हरा सके।

Devathana Eakadashi Tulsi vivah 2018

Devathana Eakadashi Tulsi vivah 2018: इस तरह से वृंदा बन गई तुलसी, जानिए ये कथा

लखनऊ. आज देव उठान एकादशी है। कार्तिक मास में तुलसी पूजा व तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। तुलसी (पौधा) अपने पूर्व जन्म में एक लड़की थीं, उनका नाम वृंदा था। वैसे तो तुलसी का जन्म राक्षस कुल में हुआ था लेकिन वह बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थीं। जब तुलसी बड़ी हुईं तो उनका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से कर दिया गया।
आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी

राक्षस जलंधर बहुत ही बलवान था वह समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वहीं वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थीं। वह हमेशा अपने पति की सेवा में तत्पर रहती थीं। एक बार देवताओ और दानवों में जोरदार युद्ध हुआ। जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो उनकी पत्नी वृंदा ने कहा.. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी। जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी।
उधर राक्षस जलंधर युद्ध में चला गया और इधर उसकी पत्नी वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। वृंदा के व्रत का प्रभाव इतना था कि देवता भी जलंधर को नहीं हरा सके। सभी देवता जब हारने लगे तो फिर विष्णु भगवान के पास पहुंचे और उनसे सभी ने प्रार्थना की।
मैं उससे छल नहीं कर सकता

इस पर विष्णुजी बोले-वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उससे छल नहीं कर सकता। इस पर देवता आश्चर्यचकित हो गए और बोले कि भगवान दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं लेकिन हमारी सहायत अवश्य करें। इस पर विष्णु जी ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए।
जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा तो वह तत्काल पूजा में से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया। इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया। जलंधर का कटा हुआ सिर जब महल में आ गिरा तो वृंदा ने आश्चर्य से भगवान की ओर देखा जिन्होंने जलंधर का रूप धर रखा था।
इस पर विष्णुजी अपने रूप में आ गए, लेकिन कुछ बोल नहीं पाए। वृंदा ने कुपित होकर भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। श्राप से विष्णु जी तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में हाहाकार मच गया, लेकिन देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा मान गईं और अपना श्राप वापस ले लिया।
जलंधर का सिर लेकर सती हो गईं
इसके बाद वंृदा अपने पति जलंधर का सिर लेकर सती हो गईं। उसके बाद उनकी राख से एक पौधा निकला तब विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहुंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा।
इतना ही नहीं विष्णुजी ने कहा कि किसी भी शुभ कार्य में बिना तुलसी जी के भोग के पहले कुछ भी स्वीकार नहीं करुंगा। तभी से ही तुलसी जी कि पूजा होने लगी। कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
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