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विवादित भूमि निर्मोही अखाड़े की, कोर्ट में होती है कागज की लड़ाई, मौखिक नहीं

locationलखनऊPublished: Apr 18, 2018 10:23:29 am

Submitted by:

Ashish Pandey

निर्मोही अखाडा के सरपंच ने विवादित भूमि पर सिर्फ निर्मोहो अखाड़े की सम्पति होने का किया दावा।
 
 
 

Disputed land Nirmohi Akhada
अयोध्या. राम जन्म भूमि विवाद को लेकर निर्मोही अखाड़े के सरपंच राजा राम चंद्राचार्य ने विवादित भूमि पर निर्मोही अखाड़े का होने का दावा करते हुए कहा कि विवादित भूमि के पास सभी स्थलों पर निर्मोही अखाड़े का नाम दर्ज है। यह जमीन किसी अल्लामिया की नहीं और न ही रामजी का है। पूर्व में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को भूमि विवाद के रूप में देखे जाने की बात कही थी तो इस भूमि विवाद में सिर्फ दो पक्षकार निर्मिहो अखाड़ा और सुन्नी सेन्ट्रल बोर्ड है तीसरा कोई नहीं है।
अयोध्या रामघाट स्थित निर्मोही अखाड़े के कई स्थानों से आये निर्मोही अखाड़े के पंच और सरपंच ने बैठक की। इस बैठक में सुप्रीम कोर्ट में चल रहे विवाद का निर्णय अब जल्द होने की संभावना व्यक्त करते हुए राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर जल्द निर्माण होने को लेकर वार्तालाप किया।
निर्मोही अखाडा के सरपंच राजा राम चंद्राचार्य ने पत्रिका टीम से बातचीत में बताया कि आज अयोध्या में सभी पंच इकठ्ठा हुए है और सुप्रीम कोर्ट में चल रहा विवाद अब आखरी पड़ाव पर है, जल्द ही इसका फैसला आ सकता है ताकि भगवान राम का मंदिर बन सके। उन्होंने बताया कि कोर्ट में चल रहा भूमि का विवाद पर सिर्फ निर्मोही अखाड़े का हक़ है जो की 1877 से आज भी यह अखाड़ा मुकदमा लड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि इस स्थान पर न ही मस्जिद और न ही कब्रिस्तान है। उन्होंने दावे की पुष्टि करते हुए कहा कि राम जन्म भूमि के दक्षिण तरफ राजस्व अभिलेख में दर्ज निर्मोही अखाड़े के पंच रहे महंत रामदास का सुमित्रा भवन मंदिर प्राचीन काल से स्थित रहा है तथा विवादित परिसर के सामने स्थित सीता गुफा मंदिर तथा अन्य मंदिरों पर निर्मोही अखाड़े के पंच नवल किशोर दास दर्ज रहें हैं। इस प्रकार से राजस्व अभिलेख में अखाड़े के पंचों के नाम है। विवादित परिसर पर महंत रघुनाथ दास के नाम दाखिल खारिज, यह सभी निर्मोही अखाड़े के स्वामित्व के साक्ष्य हैं।1861 में ही राजस्व ग्राम कोट रामचन्दर का पहला सेटेलमेंट हुआ था। इसके नक्शे में आराजी में मस्जिद कहीं दर्ज नहीं है और इसी को आधार मानते हए हाईकोर्ट ने आठ अगस्त 1991 को दिए फैसले में 1961 के सर्वे कमिश्नर की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।
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