दरअसल इमरान की बात में दम है। गोरखपुर का क्रंदन शुक्रवार शाम होते-होते लखनऊ पहुंच चुका था। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.केके गुप्ता सहित अफसरों का अमला वहां रवाना हो चुका था। इसके बावजूद मौतों पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था। खुद डॉ.गुप्ता का कहना था कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं थी। इसके बावजूद यदि लापरवाही हुई है तो किसी को बख्शा नहीं जाएगा। हमने इमरान से बात की तो वे बोले, न बख्शने की बातें तो हर साल होती हैं किन्तु कोई स्थाई एक्शन प्लान नहीं बनता। हालात ये हैं कि सरकारी आंकड़ों में ही पिछले चालीस साल में बीस हजार से अधिक लोगों की मौत इंसेफेलाइटिस के कारण हो चुकी है। इससे निपटने के नाम पर गोरखपुर में एम्स सहित तमाम अस्पताल खोलने के प्रस्ताव बन कर पारित तक हो चुके हैं। अमेरिका तक से विशेषज्ञ यहां आते हैं। इसके बावजूद इंसेफेलाइटिस को लेकर सतर्कता है ही नहीं।
नहीं होता फैसलों पर अमल
इंसेफेलाइटिस से लगातार हो रही मौतों के पीछे सबसे बड़ा कारण सरकार के फैसलों पर अमल न होना ही है। इलाज की पूरी जिम्मेदारी बस गोरखपुर मेडिकल पर छोड़ दी गयी है। तमाम दावों के बावजूद जिला अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों पर गंभीर मरीज भर्ती ही नहीं किये जाते। सभी मरीज सीधे मेडिकल कालेज भेज दिये जाते हैं। इस वर्ष प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही स्वास्थ्य विभाग एक बार फिर सक्रिय हुआ था। तय हुआ था कि गोरखपुर व बस्ती मंडल के सात जिलों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 104 इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) बनाए जाएंगे। इसके बावजूद ये ईटीसी प्रभावी रूप से अमल में नहीं आ सके हैं। परिणाम स्वरूप चिकित्सकीय अराजकता बनी हुई है और कोई भी सीधे जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।
इंसेफेलाइटिस से लगातार हो रही मौतों के पीछे सबसे बड़ा कारण सरकार के फैसलों पर अमल न होना ही है। इलाज की पूरी जिम्मेदारी बस गोरखपुर मेडिकल पर छोड़ दी गयी है। तमाम दावों के बावजूद जिला अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों पर गंभीर मरीज भर्ती ही नहीं किये जाते। सभी मरीज सीधे मेडिकल कालेज भेज दिये जाते हैं। इस वर्ष प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही स्वास्थ्य विभाग एक बार फिर सक्रिय हुआ था। तय हुआ था कि गोरखपुर व बस्ती मंडल के सात जिलों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 104 इंसेफेलाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर (ईटीसी) बनाए जाएंगे। इसके बावजूद ये ईटीसी प्रभावी रूप से अमल में नहीं आ सके हैं। परिणाम स्वरूप चिकित्सकीय अराजकता बनी हुई है और कोई भी सीधे जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।
गंभीर मरीजों के लिए बस 102 बेड इंसेफेलाइटिस में गंभीर मरीजों की संख्या तेजी से बढऩे की प्रवृत्ति तेज होती है। पूर्वांचल में गोरखपुर के अलावा बस्ती, आजमगढ़ व देवीपाटन मंडल के सभी जिलों से भारी संख्या में इंसेफेलाइटिस के मरीज सामने आते हैं। इनमें भी गोरखपुर व बस्ती मंडल की स्थिति तो खतरनाक मानी जाती है। इस भयावह स्थिति के बावजूद इन जिलों में गंभीर मरीजों के इलाज के लिए सघन चिकित्सा के पुख्ता इंतजाम हैं ही नहीं। हालात ये हैं कि गोरखपुर में मेडिकल कालेज को छोड़ दिया जाए तो 12, देवरिया, संत कबीर नगर, लखीमपुर खीरी, कुशीनगर, महाराजगंज, बहराइच व सिद्धार्थनगर में दस-दस और बस्ती में बीस बेड की ही सुविधा उपलब्ध है। वेंटिलेटर सहित कुल 102 बेडों के सहारे हजारों मरीजों का इलाज होता रहता है। इन जिलों के अलावा कानपुर देहात, सहारनपुर, फैजाबाद, बरेली, इलाहाबाद, वाराणसी व मुरादाबाद में भी इंसेफेलाइटिस के मरीज सामने आते हैं।