नौकरी के लिए तैयार करने के लिए शुरू हुआ कोर्स नदवा कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने वाले डॉ. मोहम्मद असलम सिद्दीकी के मुताबिक, ये कोर्स छात्रों को आज के दौर में नौकरी के लिए तैयार करने के लिए है। इसमें सिर्फ पास आउट छात्र ही लिए गए हैं। उनके मुताबिक, अंग्रेजी के जरिए हम उन तक आसानी से पहुंच जायेंगे इसके अलावा जब अग्रेज़ी आएगी तो समाज में आपको फायदा होगा। फिलहाल वह उन्हीं बच्चों को ले रहे हैं जो हमारे यहां पढ़ चुके हैं ताकि वो बाहर जा कर आसानी से अपनी बात रख सके और समझ सकें।
सीवी बनाने से लेकर डिबेट तक की तैयारी उन्हें सीवी बनाने से लेकर रीडिंग, पोइट्री, ग्रामर व डिबेट कॉम्पिटिशन के लिए भी तैयार किया जा रहा है। अभी फिलहाल दस छात्र इस कोर्स से जुड़े हैं। खास बात ये है कि इस कोर्स में पढ़ने वाले छात्र को तीन हजार रुपए प्रति माह का स्टाइपेंड भी दिया जा रहा है। डॉ. मोहम्मद असलम सिद्दीकी ने बताया कि वह पहले एक इंटर कॉलेज में प्रिंसिपल थे। रिटायरमेंट के बाद वह एकेडमिक्स से ही जुड़े रहना चाहते थे। उन्हें जब पता चला कि ऐसा कोर्स नदवा में शुरू हो रहा है तो वह इससे जुड़ गए। यहां पर वह छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाने के साथ-साथ जॉब इंटरव्यू के लिए भी तैयार कर रहे हैं।
नदवा के बारे में जानकारों के मुताबिक नदवा कोई आम मदरसा नहीं हैं। भारतीय सुन्नी मुसलमानों में इसकी मान्यता देवबंद के दारुल उलूम के बराबर ही है। यहां पढ़ने वाले सैय्यद इबाद नत्तेर का कहना है कि वह अंग्रेजी विभाग शुरू होने से काफी खुश हैं। इबाद के मुताबिक ,आजकल ज़रूरी हैं कि हम अंग्रेजी जाने. ज़बान सीखने में कोई बुराई नहीं हैं। वह सोशल मीडिया, फेसबुक और ट्विटर पर काफी सक्रिय रहते हैं। फिलहाल नदवा में इंग्लिश उन बच्चों के लिए रखी गयी हैं जो अपना धार्मिक कोर्स पूरा करने के बाद बाहर की दुनिया में जा रहे होते हैं। ऐसे छात्र इंग्लिश सीख सकते हैं।
जानें नदवा का इतिहास साल 1893 में नदवातुल उलेमा संस्था के कानपुर में हुए पहले कन्वेंशन में शिक्षण संस्थान बनाने का विचार हुआ। फिर पांच साल बाद 1898 में दारुल उलूम नदवातुल उलेमा की स्थापना की गयी।नदवा की स्थापना का मकसद धार्मिक विशेषज्ञ तैयार करने के अलावा पहले भी यही था कि इस्लामिक थियोलोजी पढ़ाने वाले संस्थानों के पाठयक्रम में आधुनिक युग के हिसाब से बदलाव लाये जाये जिससे देश का सांस्कृतिक विकास हो सके।
देवबंद में भी होती है पढ़ाई
एक वेबसाइट के मुताबिक, इस समय दारुल उलूम देवबंद में भी पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर अंग्रेजी पढ़ाई जाती हैं। जोर इस्लामिक शिक्षण पर हैं और जो छात्र इसको पढ़ना चाहते हैं वे इसको पढ़ते हैं।भारत के सबसे बड़े इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम, देवबंद जो 1866 में स्थापित हुआ था वहां के लोग भी अंग्रेजी के पक्ष में हैं। देवबंद के जनसंपर्क अधिकारी मौलाना अशरफ उस्मानी कहते हैं, “देखिये हम कभी अंग्रेजी के खिलाफ नहीं रहे हैं। हम इसकी हिमायत करते हैं। अब आप बताएं अगर रेलवे रिजर्वेशन फॉर्म भी भरना हैं तो हमें अंग्रेजी या हिंदी आनी चाहिए।
एक वेबसाइट के मुताबिक, इस समय दारुल उलूम देवबंद में भी पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर अंग्रेजी पढ़ाई जाती हैं। जोर इस्लामिक शिक्षण पर हैं और जो छात्र इसको पढ़ना चाहते हैं वे इसको पढ़ते हैं।भारत के सबसे बड़े इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम, देवबंद जो 1866 में स्थापित हुआ था वहां के लोग भी अंग्रेजी के पक्ष में हैं। देवबंद के जनसंपर्क अधिकारी मौलाना अशरफ उस्मानी कहते हैं, “देखिये हम कभी अंग्रेजी के खिलाफ नहीं रहे हैं। हम इसकी हिमायत करते हैं। अब आप बताएं अगर रेलवे रिजर्वेशन फॉर्म भी भरना हैं तो हमें अंग्रेजी या हिंदी आनी चाहिए।