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कोराना और हम : सब कुछ ठीक हो जाएगा, बस याद रहेगी आपकी सामाजिकता

locationलखनऊPublished: Mar 26, 2020 07:55:15 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

हर किसी की सीमा होती है। मौत आ जाने की आशंका का खौफ भी एक दिन खत्म हो जाता है।

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महेंद्र प्रताप सिंह

काशी के मणिकर्णिका घाट पर चिता की आग कभी नहीं बुझती। यह कटु सच है। २४ घंटे जलते शवों के बीच यहां हरदम नीरव निस्तब्धता भी नहीं रहती। यह एक और सचाई है। मृत्यु का भय जब जीने की जिजीविषा पर भारी पड़ता है, तब चेहरे से मुर्दनी छंटती है। बीच-बीच में हंसी भी छूटती है। मृत्यु का मजाक भी बनता है। आखिर कोई कब तक डर के साये में रह सकता है? किसी को कोई कब तक कितना डरा सकता है। हर किसी की सीमा होती है। मौत आ जाने की आशंका का खौफ भी एक दिन खत्म हो जाता है। कमोबेश, वैश्विक महामारी कोरोना की दहशत के बीच हम सब की यही स्थिति है। लॉकडाउन की वजह से सडक़ें सूनी हैं, गलियों में सन्नाटा है। कोरोना को हराने के लिए सभी अपने-अपने घरों में कैद हैं। सभी से सन्नाटा स्वीकार कर लिया है। इसीलिए हर घर की डेहरी पर लक्ष्मण रेखा खिंची है। बाहर मौत नाच रही है। सभी को पता है। कोरोनाजनित मृत्यु की आशंका से सभी डरे हैं। भयभीत हैं, फिर भी हंस रहे हैं। संशकित हैं लेकिन, व्यंग्य कर रहे हैं। मिलकर लड़ेगे कोरोना से जंग। यह संकल्प सभी दोहरा रहे हैं। एक दूसरे को दिलासा दे रहे हैं। यही जिजीविषा है। सभी के धैर्य का यह इम्तहान है।

कोरोना नया सामाजिक पाठ भी सिखा रहा। लॉकडाउन ने सभी रास्ते बंद कर दिए हैं। जो अपने घरों में हैं वे खुद को महफूज महसूस कर रहे हैं। जो अपने परिवार से दूर किन्हीं कारणों से परदेश में फंस गए हैं वे बड़ी मुश्किलों में हैं। फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं। दफ्तरों के भी शटर डाउन हैं। ऐसे में शहर में पड़े रहे तो भूखों मरने की नौबत। घर पर एक वक्त की रोटी तो मिलेगी। अपनों के बीच में तो रहेंगे। यही सोचकर सैकड़ों किमी दूर अपने घरों के लिए लोग पैदल ही चल पड़े हैं। बुर्जुग बताते हैं देश विभाजन और हैजा-प्लेग के समय यही स्थितियां बनी थीं। तब एक दूसरे के मददगार बने थे। लेकिन अब। खतरनाक स्थिति है। लंबे सफर पर निकले भूखे-प्यासे लोगों को लोग अपने गांवों में घुसने नहीं दे रहे। उन्हें डर है, आशंका है कोरोना न घेर ले। सोशल डिस्टेंसिंग ने मानवीयता को तार-तार कर दिया है। इस भय से निकलिए मानवता का तकाजा है भूखों को रोटी-पानी दीजिए। हौसला बढ़ाइए।

सोचिए। असंतुलित विकास और आधुनिकता के सह उत्पाद ने मिलकर ही कोरोना जैसी महामारी को जन्म दिया है। टीबी और मलेरिया से हर साल लाखों लोग मरते हैं। मीडिया और हम इन बीमारियों को सामान्य और एक हद तक स्वीकार्य मानते आये हैं। लेकिन, कोरोना यानी कोविड-१९ जिससे समूची दुनिया में अभी तक १८ हजार मौतें ही हुई हैं इसने पूरी दुनिया की मीडिया को हाईजैक कर लिया है। पूरी दुनिया को खौफ में डाल दिया है। समूची दुनिया की मीडिया में २४ घंटे सिर्फ और सिर्फ मौत की आशंका की खबरें। सोशल मीडिया पर भी हर रोज नई सलाह। इन आधी-अधूरी जानकारियों से हमें कौन डरा रहा है? जाहिर है ये डॉक्टर नहीं हैं। इसलिए सोशल मीडिया में तैर रही तमाम खबरों को कान न दें। उन्हें फारवर्ड न करें। याद रखें। इस भयानक त्रासदी के दौर में भी लाखोंं ऐसी जिंदगियां हैं जो व्यापक रूप से बचाई जा सकती हैं। सोचिए, कितने लोग इस अफरा-तफरी में भूख से मर जाएंगे। कितने तो मौत की दहशत से मारे जाएंगे। तमाम लोग कई अन्य बीमारियों से पीडि़त हैं। वे बिना इलाज के मर जाएंगे। अस्पतालों में ओपीडी बंद कर दी गयी हैं। आकस्मिक दुर्घटनाओं और बीमारियों से जिंदगी बचाने के कोई इंतजाम नहीं हैं। कोरोना का डर अपनी जगह। लेकिन इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है।

छोटे-छोटे बच्चे दहशत में हैं। उनके बालमन पर कोरोना क्या असर डालेगा। वे डर और खौफ की मानसिकता के साथ बड़े होंगे। हम कैसा भविष्य तैयार करेंगे। इस पर सब मौन हंै। क्या कोरोना पर ही गुड न्यूज का अकाल है। तमाम लोग भूखों को भोजन करा रहे हैं। डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टॉफ कैसे दिन रात जूझ रहे हैं। पुलिस लॉ एंड आर्डर को कैसे मेंटेन कर रही है। मीडियाकर्मी जान जोखिम में डालकर आप तक वास्तविक सूचनाएं दे रहे हैं। इनकी भी तो बात कीजिए। आपमें से कितनों ने इनके लिए प्रार्थना और दुआएं कीं। इस बात का प्रचार क्यों नहीं करते। नेकी की दीवार कितनों ने बनायी। गरीबों और बेसहारों के लिए कितनों ने रोटी की व्यवस्था की। इसे भी तो वायरल कीजिए।

आखिर हमें मानव शक्ति पर विश्वास क्यों नहीं। इतिहास गवाह है। हर मुश्किल में इंसान ने विजय पायी है। मानव में हर संकट का समाधान खोज लेने की ताकत और अद्भुत क्षमता है। सब कुछ खोकर फिर सब कुछ पा लेता है इंसान। मृत्यु एक सचाई है यह जानते हुए भी श्मशान घाट पर हंसी छूटती है। इसलिए डर के खौफ से बाहर निकलिए। बच्चों को डरपोक और नैराश्य में जाने से बचाइए। मानवता ही है जो हमेशा जिंदा रहेगी। संकट की इस घड़ी में आपने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी कैसे निभाई इतिहास इसी को याद रखेगा। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप कैसे जिंदा रहे। महत्वपूर्ण यह है मणिकर्णिका के घाट पर भी खड़े होकर आपने मानवता की रक्षा कैसे की।

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