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ज्ञान-विज्ञान का संचयन और विस्तार, भाषा के बिना सम्भव नहीं- आनंदीबेन पटेल

locationलखनऊPublished: Mar 01, 2021 03:34:56 pm

Submitted by:

Ritesh Singh

विद्यार्थी अपने साथ ही परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति में सकारात्मक योगदान दें

ज्ञान-विज्ञान का संचयन और विस्तार, भाषा के बिना सम्भव नहीं- आनंदीबेन पटेल

ज्ञान-विज्ञान का संचयन और विस्तार, भाषा के बिना सम्भव नहीं- आनंदीबेन पटेल

लखनऊः उपाधि पाने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए यह दिन अत्यंत अविस्मरणीय होता है, क्योंकि उनके कंधों पर अस्मिता को साबित करने, जीवन में एक मुकाम हासिल करने का दायित्व बोध आता है। ये उद्गार उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने आज ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के पंचम दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि संस्थान के विद्यार्थी अपने साथ ही परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति में सकारात्मक योगदान प्रदान करेगें। इस अवसर पर राज्यपाल ने 75 विद्यार्थियों को 85 मेडल प्रदान किये, जिसमें 40 मेडल छात्रों को तथा 45 मेडल छात्राओं को प्रदान किये, जिसमें मरयम हफीज को सर्वाधिक 4 गोल्ड मेडल दिये गये।
राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा एवं समाज के बीच एक पारस्परिक संबंध है। शिक्षा से व्यक्ति में समाज बोध का विकास होता है एवं वह समाज के सभी अंगों के प्रति आदर, समन्वय एवं सहयोग की भावना को आत्मसात करता है। इस प्रकार व्यक्ति को पूर्णता प्रदान कर एक जागरूक नागरिक बनाने में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि सही एवं सार्थक शिक्षा व्यक्ति के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों में समन्वय स्थापित कर उसे अपने जीवन के लक्ष्यों का चयन करने एवं उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।
आनंदीबेन पटेल ने कहा कि भाषा किसी भी व्यक्ति को अभिव्यक्ति प्रदान करती है। ज्ञान-विज्ञान का संचयन और विस्तार, भाषा के बिना सम्भव नहीं है। उन्होंने कहा कि विगत के कुछ दशकों में भाषा के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर शोध कार्यों की संख्या में भारी कमी आयी है। ऐसे में भाषा के क्षेत्र में, शोध कार्यों को बढ़ावा देने की जरूरत है। साथ ही विलुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
राज्यपाल ने बताया कि ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय ने विलुप्त हो रही भाषाओं के संरक्षण के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। यह समिति भाषा विश्वविद्यालय की अवधारणा को मूर्तरूप प्रदान करने के लिए फ्रेमवर्क तैयार करने के साथ ही विलुप्त हो रही भाषाओ के संरक्षण हेतु भी परामर्श प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों का यह अध्ययन एवं परामर्श भाषाओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
राज्यपाल ने नई शिक्षा नीति की अवधारणा के अनुसार ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में भाषाओं की शिक्षा प्रदान करने के साथ ही साथ विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, शिक्षा शास्त्र, वाणिज्य, व्यवसाय, प्रशासन, पत्रकारिता एवं जनसंचार एवं प्राविधिक शिक्षा जैसे पाठ्यक्रम संचालित किये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में भाषाओं के पाठ्यक्रम को रोजगारपरक बनाने के लिए भी कार्य प्रारंभ हुआ है। इसके लिए विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर मॉर्डन यूरोपियन एंड एशियन लैंग्वेज की स्थापना की गई है। साथ ही साथ जर्मन, फ्रेंच, जापानीज और कोरियन भाषाओं के पाठ्यक्रम शुरू करने की पहल की गई है।
राज्यपाल ने कहा कि भाषा को प्रौद्योगिकी से जोड़ने के प्रयास करें ताकि विश्वविद्यालय विश्व प्रसिद्ध बन सकें। ऐसा सभी को संकल्प लेना चाहिए। विश्वविद्यालय में प्राथमिक से लेकर इण्टरमीडिएट के छात्रों का भ्रमण भी कराया जाय ताकि बच्चें विश्वविद्यालय को जानकर अपने आगे के भविष्य को जान एवं समझ सकें। राज्यपाल ने कहा कि 2030 तक 50 प्रतिशत छात्र-छात्राओं को विश्वविद्यालय तक पहंुचाया जाना है। उन्होंने कहा कि भ्रमण पर आने वाले बच्चों को अपने विचार रखने के लिए भी प्रेरित करें।
उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डा0 दिनेश शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि भाषा विश्वविद्यालय ने अल्प समय में ऊंचाइयों को छुआ है। नई शिक्षा नीति में भी इसी प्रकार के भाषा विश्वविद्यालय की कल्पना की गयी है। विश्वविद्यालय द्वारा आनलाइन शिक्षा, शोध पत्रों का प्रकाशन डिजिटल लाइब्रेरी की दिशा में सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने कहा कि विलुप्त हो रही भाषाओं पर गंभीरता पूर्वक शोध किया जाना नितांत आवश्यक है। राज्यपाल ने मुख्य अतिथि पद्मश्री डाॅ0 अशोक चक्रधर को मानद उपाधि से सम्मानित किया तथा उन्होंने स्कूली बच्चों को बैग, पुस्तकें आदि प्रदान किये। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की स्मारिका का भी विमोचन किया गया।

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