जिस तरह से हिमाचल प्रदेश के शिमला में इन दिनों जल संकट काबू से बाहर हो चुका है। ठीक उसी तरह इन दिनों लखनऊ के अनेक क्षेत्रो मेंं भी रात को लोग पानी के लिए सडक़ों पर कतार लगा रहे हैं। पानी की सप्लाई बहुत कम है। कुछ जगहों पर तो न के बराबर है। नलों में पानी नहीं आ रहा। घर-घर लगे अवैध सबमर्सिबल पंपों की वजह से अधिकांश हैंडपंप सूख गए हैं। अपार्टमेंट वाले आमजनता के हक पर डाका डाल रहे हैं। प्रशासन जानबूझकर अनजान बना है।
नीति आयोग ने जल प्रबंधन पर एक रिपोर्ट जारी की है। उसके मुताबिक उत्तर प्रदेश जल प्रबंधन में फिसड्डी साबित हुआ है। नीति आयोग के जल प्रबंधन सूचकांक सूची में उप्र सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक उप्र में लाखों जिंदगियां और उनकी आजीविका सिर्फ पानी की वजह से खतरे में है तकरीबन 75 फीसदी घरों में पीने का पानी मुहैया नहीं है । 84 फीसदी ग्रामीण घरों में पाइप से पानी नहीं पहुंचता और प्रदेश में 70 फीसदी पानी पीने लायक नहीं है। हालत यह है कि देश के तकरीबन 60 करोड़ लोग पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं और साफ पानी न मिलने से हर साल 2 लाख लोगों की मौत हो रही है। पानी की वर्तमान आपूर्ति के मुकाबले 2030 तक आबादी को दोगुनी पानी की आपूर्ति की जरूरत होगी। वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में भारत 120वें स्थान पर है।
-घरों में हर बार फ़्लैश चलाने से बचा जाए।
-वाटर फ्री यूरिनल्स का प्रयोग शर्त बन जाए।
-100 फ्लैट वाला अपार्टमेंट इस तरह एक दिन में कम से कम 7 हजार लीटर पानी बचाएगा।
-हर अपार्टमेंट में किचन और बाथरूम के पानी के संचय और रिसाइकिलिंग के बाद पुन: उपयोग की व्यवस्था हो
-स्कूल, आफिस और प्रत्येक अपार्टमेंट में यह व्यवस्था अनिवार्य हो।
-प्रत्येक घर को वर्षा जल संचय करना अनिवार्य किया जाए।
-नदियों और नालों में बह जाने वाले जल के संचय की व्यवस्था हो।
-अवैध सबमर्सिबल पर रोक लगे।