स्वामी ने कहा कि जीव जैसा कर्म करता है फल भी वैसा ही मिलता है। पूर्व के कर्म के अनुसार फल मिलता यह प्रारब्ध है। वह कर्म करता है विश्वास करता है जो मिला वह प्रारब्ध है । प्रारब्ध कोई बदल नही सकता जैसे महाराज दशरथ जी का जब राजकुमार थे उस समय शब्द वाण से अपराध पर श्राप मिला था कि पुत्र वियोग में शरीर छुटेगा। उन्होंने कहा कि जीव का मन गोले के बीच का बिन्दु और व्यवहार परिधि है। वस मन से सब के साथ व्यवहार करता है। उसका मन ठीक तो परिवार, रिश्तेदार और परिचित सब ठीक, मन खराब सब खराब। मन से भक्ति करो भगवान कहते हैं मन मुझे लगाओ।
स्वामी अभयानन्द ने कहा कि सत्संग श्रोता बन कर ना सुनो संत (वक्ता ) की वाणी को उनके हृदय के धरातल पर विचारों में डूबकर एकाकार होकर श्रवण करो। जीवन के अन्तिम समय मे भगवान याद आ गये बेड़ा पार हो जायेगा। इस लिए सत्संग मत छोडो। संयोजक आलोक दीक्षित ने बताया कि कथा 22 अगस्त तक शाम 6 बजे से 8 बजे तक होगी। कथा में ग्राम्य विकास मंत्री महेन्द्र प्रताप सिंह, भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष राहुल राज रस्तोगी, शौरभ शुक्ला मौजूद रहे।