रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) (Menopause) के बाद आस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) महिलाओं को होने वाली आम समस्या है। इसमें हड्डियां खोखली होकर टूटने लगती हैं। महिलाएं चलने-फिरने में लाचार हो जाती हैं। वर्तमान में उपचार में बोन एनाबॉलिक थेरेपी (Anabolic therapy) होती है, जिसमें हर दिन टेरिपैराटाइड इंजेक्शन (Teriparatide Injection) दिया जाता है। महंगा होने के साथ ही इंजेक्शन का रखरखाव भी मुश्किल होता है। इसे फ्रिज में रखना जरूरी होता है और दक्ष व्यक्ति ही लगा सकता है। इन जटिलताओं के चलते ही इलाज काफी मुश्किल होता है। वहीं, इलाज पर प्रति माह लगभग सात हजार रुपये तक का खर्च आता है।
चूहों और खरगोश पर प्रयोग सफल
सीडीआरआइ के इंडोक्राइनोलॉजी विभाग (Endocrinology Department of CDRI) के चीफ साइंटिस्ट डॉ. नैवेद्य चट्टोपाध्याय बताते हैं कि ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) के इलाज के लिए एक ऐसी दवा की जरूरत थी, जिससे बीमारी आसानी से दूर हो जाए। शोध में देखा गया कि पैंटोक्सिफायलिन दवा (Pantoxifylene drug) का प्रयोग इंटरमिटेंट क्लाडिफिकेशन (Intermittent classification) (बढ़ती उम्र में होने वाली परिधीय धमनी की बीमारी, जिसमें पिंडलियों में तेज दर्द होता है) के लिए काफी कारगर रहा।
डॉ. चट्टोपाध्याय बताते हैं कि शोध में पैंटोक्सिफायलिन (Pantoxifylene) का महज छठवां भाग खरगोशों और चूहों को देने पर हड्डियों का द्रव्यमान (बोन मास), शक्ति, सूक्ष्म संरचना और गुणवत्ता में वही सुधार आया जो इंजेक्शन देने पर होता है। इससे साबित हो गया कि मेनोपॉज (Menopause) के बाद होने वाली ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) में हार्मोनल इंजेक्शन (Hormonal injection) के बजाय गोली कारगर है।
एम्स (AIIMS) में होगा ट्रायल
यह शोध बोन एंड कैल्सिफाइड टिश्यू इंटरनेशनल (Bone and Calcified Tissue International) जैसे प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) (Indian Council of Medical Research (ICMR) से फंडिंग मिलते ही एम्स दिल्ली में दवा का ट्रायल शुरू किया जाएगा।
किडनी के मरीजों के लिए शोध शुरू
किडनी फेल्योर के मरीजों में भी ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) की विकट समस्या होती है। वैज्ञानिकों ने अब इस औषधि का परीक्षण किडनी मरीजों में करना आरंभ कर दिया है।
ये है ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)
हड्डियों में होने वाली ऐसी समस्या, जिसमें हड्डियां खोखली होने लगती हैं। मरीज यदि बैठे-बैठे लुढ़क भी जाए तो फ्रैक्चर हो सकता है। इस कारण पीडि़त मरीज में सबसे अधिक फ्रैक्चर रीढ़ व कूल्हे की हड्डी में होता है, जिससे मरीज लाचार होकर बिस्तर पर लेट जाता है।