वेबिनार की संयोजिका अनीता बोस ने बताया कि रामकथा भारत, तिब्बत, श्रीलंका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, बंगाल, इंडोनेशिया ही नहीं अमेरिका तक में आम जन से जुड़ी है। फिल्म और ग्राफिक माध्यम ही नहीं अन्य विभिन्न दृश्य कलाओं के माध्यम से भी रामकथाओं का वैश्विक प्रसार तेजी से हो रहा है।
इस वेबिनार में कलकत्ता स्थित द एशियाटिक सोसाइटी म्यूजियम सेक्शन के सीनियर केटालॉगर डॉ.जगतपति सरकार ने बंगाल में राम और राम कथा पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बंगाल के पुरालेख, रामकथा से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। उसमें गुप्त काल के शिलालेख खासतौर से महत्वपूर्ण हैं। इंडोनेशिया के रामायण कलाकार कोकोरदा पुत्र ने बाली में रामायण परंपरा की जानकारी दी। श्रीलंका के शोधकर्ता महेश सेनाधीरा पथिराज ने रावण के औषधि विज्ञान, कला और व्यवहारिक जीवन पर प्रभाव विषय पर व्याख्यान दिया। बीएचयू के संस्कृत विभाग के असोसिएट प्रो.सुकुमार चट्टोपाध्याय ने रामायण में वैदिक अवधारणाओं का प्रभाव” विषय पर बताया कि रामायण, मौलिक वैदिक अवधारणाओं से प्रभावित है।
उस आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि विश्व भर में लोकप्रिय राम-कथा वैदिक परंपरा का ही प्रसार करती है। विदेश मंत्रालय में कोर्स को-आर्डिनेटर
उस आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि विश्व भर में लोकप्रिय राम-कथा वैदिक परंपरा का ही प्रसार करती है। विदेश मंत्रालय में कोर्स को-आर्डिनेटर
अमरनाथ दुबे ने तिब्बत में रामायण के प्रभाव और ऑस्ट्रेलियन ब्लॉगर धरणी पुष्पराजन ने प्राचीन भारतीय जनजातियों पर वक्तव्य दिया। अमेरिका के शोधकर्ता माइकल स्टर्नफील्ड ने रामायण परंपरा और कोलम्बो विश्वविद्यालय की वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ.कुमुदनी मद्दुमागी ने श्रीलंका में रामायण रंगमंच परंपरा की दिलचस्प जानकारी दी। जर्मनी की नृत्यांगना डॉ.राज्य रमेश ने रामायण में नृत्य परंपरा के बारे में बताया। वरिष्ठ अभिनेता बाला शंकुरत्रि ने भी इस वेबिनार में भाग लिया। अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेन्द्र प्रताप सिंह की परिकल्पना और जगमोहन रावत के तकनीकी संचालन में यह वेबिनार हुई।