वैभव पांडेय ने अपनी लगन और मेहनत के दम पर गांव में परंपरागत खेती की तस्वीर बदल दी। उन्होंने जिले में पहला पॉली हाउस खोलकर जरवेरा फूलों की खेती शुरू की। उनकी इस पहल से प्रेरणा लेकर जिले में तीन पॉली हाउस और खोले गए हैं।
पेशे से इंजीनियर वैभव पांडेय ने जब अपनी नौकरी छोड़कर गांव लौटकर खेती करने का फैसला किया तो सब लोगों ने उन्हें पागल तक करार दिया था, लेकिन वही वैभव आज अपने घर या गांव के ही नहीं बल्कि जिलेभर के लिए मिसाल साबित हुए हैं।
पॉली हाउस किसानों के लिए वरदान से कम नहीं है। यह एक ऐसा जरिया है जहां से किसान बेमौसम खेती करके अपनी आय को दोगुनी से भी अधिक कर सकते हैं। गोण्डा जिले के वैभव पांडेय ने विकासखंड पंडरी कृपाल का मुंडेरवा गांव में पॉली हाउस का निर्माण किया है, जहां वो जरवेरा फूलों की खेती कर रहे हैं।
पूर्वांचल का पहला पॉली हाउस :- यह पॉली हाउस देवीपाटन मंडल ही नहीं बल्कि पूर्वांचल का पहला पॉली हाउस है। वैभव पांडेय ने बताया कि यह पौधे बंगलुरु से फ्लाइट से यहां मंगाए गए हैं। बंगलुरु के फ्लोरेंस फ्लोरा नामक कंपनी से 6,500 पौधे लाए गए। पौधों की कीमत और भाड़े सहित लगभग सवा दो लाख रुपए का खर्चा आया। 1,000 वर्ग मीटर में पॉली हाउस बनाकर पौधों की रोपाई कर दी गई है और अब उनमें फूल आने शुरू हो गए हैं। वैभव इस पॉली हाउस में बेमौसम खेती करते हैं, जिससे उनका मुनाफा कई गुना बढ़ जाता है।
Gonda Poly House” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/12/08/gonda_poly_house_5475964-m.jpg”> क्या है पॉली हाउस :- पॉली हाउस एक ऐसी तकनीक है, जिसमे हम नियंत्रित वातावरण में जो कुछ पैदा करना चाहे वह कर सकते हैं। यह पालीथीन सीट से ढका होता है। इसमें कूलिंग चेंबर भी होता है, हवा बाहर निकलने के लिए भी व्यवस्था होती है। इसमें जिस तरह का आप टेम्प्रेचर चाहते हैं वह मेंटेन कर सकते हैं। इससे हम यहां बिना मौसम उगने वाले सब्जी, फूल फलों की खेती कर सकते हैं। इसमें चारों तरफ कीट-पतंगों के लिए जाल लगी होती है, जिससे सब्जी, फूलों इत्यादि में कीट पतंगों से निजात मिल सके।
इस विधि से किसान छह से सात गुना ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि जो सब्जी हम फरवरी मार्च में उगा सकते हैं, वह मई-जून में उगाएंगे तो उसकी कीमत कई गुना बढ़ जाती है। इसमें सरकार की तरफ से भी सहयोग मिल रहा है। इसमें सरकार 50 प्रतिशत तक का अनुदान दे रही है।
जरवेरा के फूल :- हालैण्ड का कीमती फूल जरवेरा समारोहों में भारी आकर्षण वाले इस फूल की खेती, स्वरोजगार और बड़ा लाभ देने वाला पौधा एक बार रोपने पर दो से ढाई साल तक फूल देता है। एक फूल (बाइट या राइजोम) की कीमत सामान्यतौर पर रंग और प्रजातिवार 15 से 25 रुपए होती है। इस हिसाब से एक एकड़ खेत में एक महीने में 50 हजार रुपए तक की कमाई होती है।
हालैण्ड से आता है टिश्यू, पूना और बंगलौर में तैयार होता है पौध :- जरवेरा का टिश्यू (पुत्ती) हालैण्ड से आता है और पूना और बंगलौर में इसके पौध तैयार किए जाते हैं। पॉली हाऊस और शेडनेट में आलू और गन्ना की भांति मेड़ बना कर पौधे की रोपाई होती है और जैसे-जैसे पौधे मजबूत होते जाते हैं, पुत्तियों की संख्या बढ़ती जाती है और उसी हिसाब से फूल भी खिलने लगते हैं।
पौधरोपण की विधि, जून-जुलाई सर्वोत्तम अवधि :- जरवेरा के पौधरोपण की सर्वोत्तम अवधि जून-जुलाई से मध्य अगस्त तक मानी जाती है। 4000 वर्ग मीटर के पाली हाऊस या शेडनेट में 20 से 21 हजार पौधे की जरूरत होती है। 1.5 फीट की दूरी और 2.5 फीट की ऊंचाई के मेड़ पर 60 सेमी की दूरी पर एक-एक पुत्ती रोपी जाती है। जैसे-जैसे पौध पुराने होते जाते हैं, पुत्तियों की संख्या बढ़ती जाती है और उसी हिसाब से फूल भी बढ़ने लगता है।
किसानी से बेहतर और कोई व्यवसाय नहीं :- वैभव पांडेय ने इतने कम उम्र में ही किसानी को चुना और यह साबित किया कि किसानी से बेहतर और कोई व्यवसाय नहीं है। वैभव पांडेय ने बताया कि मैंने लखनऊ से बीटेक करने के बाद एक आईटी फर्म में काम किया, लेकिन मेरी रुचि खेती में थी। इस कारण मैं अब सिर्फ खेती कर रहा हूं। उन्होंने बताया कि पॉली हाउस और पौधरोपण में मुझे लगभग 15 लाख रुपए का खर्च आया और इसमें मुझे उद्यान विभाग से 50 फीसदी की सब्सिडी मिली। करीब डेढ़ बीघे के पॉली हाउस में जरवेरा की खेती कर रहा हूं।
वैभव बताया कि जरवेरा के फूल को वह लखनऊ मंडी में बिक्री करते हैं, लेकिन जब उत्पाद बढ़ जाता है तो वह अपने माल को दिल्ली की मंड़ी में भी बेचते हैं। यह जरवेरा पौधरोपण के दो महीने बाद तैयार हो जाता है। इसके बाद हर तीसरे दिन हम फूल तोड़ लेते हैं। उन्होंने कहा कि यह फुल टाइम जॉब है, अगर इसमें समय दिया जाए तो बाकी पारम्परिक खेती से इसमें ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।
वैभव बताया कि जरवेरा के फूल को वह लखनऊ मंडी में बिक्री करते हैं, लेकिन जब उत्पाद बढ़ जाता है तो वह अपने माल को दिल्ली की मंड़ी में भी बेचते हैं। यह जरवेरा पौधरोपण के दो महीने बाद तैयार हो जाता है। इसके बाद हर तीसरे दिन हम फूल तोड़ लेते हैं। उन्होंने कहा कि यह फुल टाइम जॉब है, अगर इसमें समय दिया जाए तो बाकी पारम्परिक खेती से इसमें ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।
कहते हैं उप निदेशक उद्यान :- पाली हाउस के विषय में उप निदेशक उद्यान ए के श्रीवास्तव ने बताया कि किसान इसमें बेमौसम फल, फूल, मिर्च मसालों की खेती कर सकता है। यह संरक्षित खेती करने का एक तरीका है। किसानों को पाली हाउस लगाने पर 50 फीसदी का अनुदान भी सरकार से दिया जाता है। जब किसान बेमौसम सब्जियां तैयार करता है तो बाजार में उसके भाव दूने होते हैं। ऐसे में किसानों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है। जिले में सबसे पहला पाली हाउस वैभव पांडे ने लगाया था अब दो और किसान आगे आए हैं उनके यहां भी पाली हाउस निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है।