कल्याणी” और “सिरसा” के बहुरे दिन बाराबंकी जिले की फतेहपुर तहसील में कल्याणी नदी के चार किलोमीटर के दायरे को प्रवासी कामगारों ने पुनर्जीवित कर नया रूप-रंग प्रदान किया । उनका यह प्रयास अब हर ग्रामीण की जिन्दगी को रफ़्तार देने वाला साबित होगा क्योंकि उसका पानी जहाँ अब उनके जानवरों की प्यास बुझाएगा तो वहीँ खेतों को पर्याप्त पानी मिलने से फसल भी लहलहाएगी । इसी तरह फिरोजाबाद जिले में सिरसा नदी के जीर्णोधार किया गया । महोबा जिले में चेक डैम बनाकर प्रवासी कामगारों ने वर्षों से बनी पानी की समस्या को दूर कर दिया । बारिश के बाद उसमें लबालब भरे पानी को देखकर हर कोई उनकी तारीफ़ ही कर रहा है ।
स्वयं सहायता समूहों ने भी अपनाया ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गाँवों में संचालित स्वयं सहायता समूहों ने भी प्रवासी कामगारों की मदद को हाथ बढ़ाया और हुनर के मुताबिक़ काम देकर आर्थिक मदद की । कोरोना के चलते मास्क, सेनेटाइजर और पीपीई किट की मांग बढ़ने और इनकी मार्केट में उपलब्धता कम होने पर समूहों ने बड़ी संख्या में इनका निर्माण कर कमी को पूरा किया । इससे जहाँ कोरोना से लोगों को बचाने में मदद हुई वहीँ उनको एक रोजगार भी मिल गया ।
दिखाया हुनर- बदली तस्वीर उन्नाव जिले के नारायणपुर के स्कूल में बनाए शेल्टर होम में प्रवास के दौरान प्रवासी कामगारों ने अपने हुनर से स्कूल की तस्वीर ही बदल दी, जिसकी तारीफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों अपने “मन की बात” कार्यक्रम के जरिये पूरे देश के सामने कर चुके हैं । स्कूल की दीवारों पर बने चित्र इस बात की गवाही देते हैं कि “जहाँ चाह है-वहीँ राह है ।” यह तो एक बानगी भर है, प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी उनके द्वारा तमाम सराहनीय कार्य किये गए हैं ।
क्या कहते हैं आंकड़े सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ लाक़ डाउन के दौरान करीब 37 लाख प्रवासी कामगार दूसरे राज्यों और शहरों से लौटकर अपने गाँव को आये । पूर्वांचल के जौनपुर, सिद्धार्थनगर, आजमगढ़, बलिया और प्रयागराज जिले में इनकी तादाद सबसे ज्यादा रही । सिद्धार्थनगर के जिलाधिकारी ने तो बाकायदा निगरानी समितियों और आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से प्रवासी कामगारों को वायरस के संक्रमण से बचाने और उनकी हर जरूरतों को पूरा करने का हरसंभव प्रयास किया, जिसकी तारीफ़ करते प्रवासी कामगार नहीं थकते ।
सरकार के प्रयास ने जिन्दगी को बनाया आसान प्रयागराज के महेंद्र सिंह यादव और अनिल कुमार पाल कहते हैं कि कोरोना के चलते हम लोगों ने गाँव लौटना ही मुनासिब समझा क्योंकि यहाँ अपने लोग थे जिनके साथ मिलजुलकर जिन्दगी को आसान बनाया जा सकता था । यहाँ आने के बाद सरकार द्वारा मिली मदद के बारे में तो कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी इतनी चिंता करने वाला कोई है । क्वेरेनटाइन के दौरान शेल्टर होम में रहने और खाने की व्यवस्था मिली तो वहां से निकलने के बाद राशन किट भी दी गयी । खाते में पैसा आया तो गाँव में मनरेगा के तहत मिले काम ने आपदा को अवसर में बदलने का काम किया ।
अपर आयुक्त, मनरेगा योगेश कुमार का कहना है कि एकाएक बड़ी संख्या में आये प्रवासी कामगारों की रोजी-रोटी का ध्यान रखते हुए उन्हें उनके गाँव में ही मनरेगा के तहत काम दिया गया । अप्रैल 2020 से अगस्त 2020 के दौरान करीब 11.83 लाख प्रवासी कामगारों को इसके तहत काम दिया गया । इसका नतीजा रहा कि इन लाखों लोगों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौट सकी ।