उन्होंने कहा कि 1857 की इस पहली जंग को अंग्रेजों ने हुकूमत के खिलाफ बगावत का नाम दिया था पर वीर सावरकर ने इसे पहला स्वतंत्रता समर कहकर देश के सामने सही बात रखी। राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत ने बहादुर शाह जफर को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सैनिकों का नेतृत्व करने के कारण मुल्क बदर कर रंगून की जेल में कैद कर दिया था। रंगून जेल में ही 7 नवम्बर, 1862 को बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो गई।
राज्यपाल ने कहा कि 6 अगस्त, 2017 को अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान वहां स्थित बहादुर शाह जफर की दरगाह पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने गया था। उन्होंने कहा कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को भी रंगून की माण्डाला जेल में रखा गया था जहां उन्होंने गीता रहस्य जैसा ग्रंथ लिखकर लोगों को जागरूक करने का काम किया। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुगल साम्राज्य के आखिरी बादशाह देशभक्त बहादुर शाह जफर की विशिष्ट भूमिका को देश कभी भुला नहीं सकता है। बहादुर शाह जफर बहुत अच्छे इंसान के साथ ही एक अच्छे शायर भी थे। राज्यपाल ने कहा कि उनकी पहचान एक धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में थी। रंगून में रहते हुए उन्हें हर वक्त हिन्दुस्तान की चिन्ता रहती थी। उनकी अन्तिम इच्छा थी कि वह अपने जीवन की अन्तिम सांस भारत में ही लें, लेकिन ऐसा सम्भव नहीं हुआ। राज्यपाल ने कहा कि इतिहास की यह सबसे क्रूरतम सजा थी जिसमें उनकी इच्छा को पूरा नहीं किया गया जबकि सजा पाने वाले व्यक्ति की अन्तिम इच्छा को न्यायिक प्रक्रिया द्वारा पूरा किया जाता है।
राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेजों के विरूद्ध शुरू हुए स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रथम प्रयास का नेतृत्व बहादुर शाह जफर ने किया। उस समय हिन्दुस्तानी सेना असंगठित थी तथा नेतृत्व करने वाले में अनुभव की कमी थी। इस कारण काफी कुर्बानियां देने के बाद भी पराजय का सामना करना पड़ा। राज्यपाल ने कहा कि बड़ी संख्या में 9 युवकों को फासी दी गई तथा बहादुर शाह जफर के परिवार के सदस्यों को कैद कर लिया गया और अधिकांश लोगों का कत्ल कर दिया गया। राज्यपाल ने कहा कि अंग्रेज शासकों ने भारतीय सेनानियों के प्रति बर्बरता की सारी हदें उस समय पार कर दीं, जब बहादुर शाह जफर को लाल किले में कैद कर दिया और सुबह नाश्ते के वक्त बहादुर शाह जफर को उनके बेटों का कटा हुए सिर पेश किया। उन्होंने कहा कि अब आप लोग सोचिये कि हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने किन-किन विकट परिस्थितियों और यातनाओं को झेला है। उनके बलिदानों के कारण ही आज हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं।