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अब काशी-मथुरा पर विवाद : ज्ञानवापी मस्जिद-शाही मस्जिद और बाबा विश्वनाथ-कृष्ण जन्मभूमि के बारे में वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं

locationलखनऊPublished: Jun 12, 2020 02:01:31 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

– मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही मस्जिद को लेकर 1968 में हुआ था दोनों पक्षा में समझौता- अयोध्या मामले का फैसला सुनाते समय भी सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका था रुख

अब काशी-मथुरा पर विवाद : ज्ञानवापी मस्जिद-शाही मस्जिद और बाबा विश्वनाथ-कृष्ण जन्मभूमि के बारे में वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं

अब काशी-मथुरा पर विवाद : ज्ञानवापी मस्जिद-शाही मस्जिद और बाबा विश्वनाथ-कृष्ण जन्मभूमि के बारे में वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं

पत्रिका इन्डेप्थ स्टोरी
लखनऊ. अयोध्या में राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुलझने के 7 माह बाद अब काशी और मथुरा पर विवाद शुरू हो गया है। इन दोनों स्थलों पर पूजा का अधिकार बहाल करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती दी गई है। याचिका भद्र साधु समाज की तरफ से दाखिल हुई है।

ज्ञानवापी मस्जिद और बाबा विश्वनाथ

कहा जाता है कि बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्ञानवापी मस्जिद द्वारा आंशिक रूप से मंदिर के हिस्से पर अतिक्रमण किया गया है। यह भी कहा जाता है कि मूल काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करके औरंगजेब द्वारा 1669 में यहां मस्जिद का निर्माण किया गया था।

मथुरा में 1968 में हुआ था समझौता

कृष्णजी की जन्मभूमि को प्रेम नगरी भी कहते हैं। मथुरा में शाही मस्जिद ईदगाह और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर बिल्कुल अगल-बगल है। यहां पूजा अर्चना और पांच वक्त की नमाज़ नियमित रूप से चलती है। कई इतिहासकारों का दावा है कि 17वीं सदी में बादशाह औरंगज़ेब ने एक मंदिर तुड़वाया था और उसी पर मस्जिद बनी थी। हिंदू संगठनों को कहना है कि ठीक मस्जिद के स्थान पर ही कृष्ण जी का जन्म हुआ था। इस मंदिर परिसर के ठीक बाहर मथुरा का सबसे पुराना मंदिर केशव देव जी महाराज मंदिर भी है। बहरहाल, कृष्ण परिसर को लेकर कई वर्ष अदालत में मामला चला था। लेकिन दोनों धर्मों के विद्वानों ने 1968 में एक समझौता किया था। अदालत के बाहर हुए इस समझौते को अदालत की मान्यता भी मिली हुई है। तब यह फैसला हुआ था कि मंदिर-मस्जिद से संबंधित सभी मामले समाप्त किए जाएं। तब कहा गया था कि एक मंदिर की स्थापना हो और मस्जिद में भी काम चलता रहे। इसके बाद सारे झगड़े ख़त्म हो गए थे।

अयोध्या पर फैसले के समय क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने

सात महीने पहले राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए देश के तमाम विवादित धर्मस्थलों पर भी अपना रुख स्पष्ट किया था। तब कोर्ट कहा था कि काशी और मथुरा में धार्मिक स्थलों की मौजूदा स्थिति आगे भी बनी रहेगी। उनमें बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है। इसी फैसले में कोर्ट ने 11 जुलाई, 1991 को लागू प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजऩ) एक्ट, 1991 का जिक्र किया था। तब यह कहा था कि काशी और मथुरा के संदर्भ में यथास्थिति बरकरार रहेगी। तब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शर्मा की उस राय को भी दरकिनार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि धार्मिक स्थलों को लेकर सभी तरह के विवाद कोर्ट में लाए जा सकते हैं। जस्टिस शर्मा इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस बेंच में शामिल थे, जिन्होंने 2010 में अयोध्या मामले पर फैसला दिया था। उन्होंने तब कहा था प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट लागू होने से पहले के भी धार्मिक स्थल से जुड़े विवाद की इस कानून के तहत सुनवाई की जा सकती है।

अब क्यों उठा है मामला

हिंदू पुजारियों के संगठन विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा है कि यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। जिसमें कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के समय धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था उसे बदला नहीं जा सकता। गौरतलब है कि1991 में केंद्र ने एक कानून पास किया गया जिसको प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजऩ) एक्ट नाम दिया गया था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजऩ) एक्ट, 1991 में केवल एक लाइन है लेकिन इस एक लाइन ने ढेरों विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने एकसाथ समाप्त कर दिए थे।

नरसिम्हा राव सरकार ने बनाया था कानून

बाबरी विध्वंस से एक साल पहले नरसिम्हा राव की सरकार ने साल 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट, 1991 बनाया था। इस एक्ट से अयोध्या विवाद को बाहर रखा गया था, लेकिन इस एक्ट से काशी और मथुरा जैसे कई धार्मिक स्थल के विवाद को एक तरह से खत्म कर दिया गया था।

वसीम रिजवी भी कर चुके हैं एक्ट को खत्म करने की मांग

स्पेशल वर्शिप प्रोविजन एक्ट को यूपी शिया सेंट्रल बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने खत्म करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि एक स्पेशल कमेटी बनाकर कोर्ट की निगरानी में विवादित मस्जि़दों के बारे में ठीक-ठीक जानकारी इक_ा की जाए और अगर साबित होता है कि वे हिंदुओं के धर्म स्थलों को तोड़कर बनाए गए हैं तो उन्हें हिंदुओं को वापस किया जाए।

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