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राम मंदिर के लिए त्याग दी थी सीएम की कुर्सी, ऐसे थे कल्याण सिंह, जानिए कैसा रहा राजनीतिक सफर

locationलखनऊPublished: Aug 21, 2021 10:34:12 pm

Submitted by:

shivmani tyagi

अयोध्याम में विवादित ढांचे काे जब कार सेवकों ने ढहाया तो तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह पर मौन सहमति का आरोप लगा। इस पर उन्हाेंने सीएम के पद से स्तीफा दे दिया और कहा कि श्रीराम के नाम पर ऐसे 100 सीएम की कुर्सियां भी छोड़ दूं।

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को जान से मारने की धमकी, मुकदमा दर्ज

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को जान से मारने की धमकी, मुकदमा दर्ज

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ( former UP CM kalyan singh ) इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उन्हे हमेशा रामभक्त के रूप में याद किया जाएगा। कल्याण सिंह ऐसे नेता थे जिन्हाेंने श्रीराम मंदिर के लिए मुख्य्मंत्री पद से स्तीफा दे दिया था। उन्हाेंंनेृ कहा था कि श्री राम के नाम पर ऐसी 100 कुर्सियों काे भी छोड़ सकता हूं।
कल्याण सिंह का जन्म पांच जनवरी 1932 को यूपी के अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम तेजपाल लोधी और माता का नाम सीता देवी था। कल्याण सिंह के एक बेटी और एक बेटा भी हैं। भाजपा से अपनी राजनीति शुरू करने वाले कल्याण सिंह कई बार अतरौली विधानसभा से निर्वाचित हुए। वह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उनका राजनीतिक सफर यहीं तक नहीं रूका उन्हाेंने लोकसभा सांसद बनने के साथ-साथ राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। कल्याण सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उन्ही के कार्यकाल में बाबरी मस्जिद ( विवादित ढांचा ) ढहाये जाने की घटना हुई थी। इस दौरान उन पर मौन सहमति का आरोप लगा था जिसके बाद उन्हाेंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए कहा था कि राम मंदिर ? ( Ram Mandir ) के लिए वह ऐसी 100 कुर्सियां भी कुर्बान कर सकते हैं।
ऐसे थे कल्याण सिंह
कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश में भाजपा का सबसे कद्दावर नेता माना जाता था. सबसे पहले हरीश चंद्र श्रीवास्तव ने कल्याण सिंह का नाम लिया था। उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से कहा था कि दस बार लगातार विधायक बने कल्याण सिंह यूपी में भाजपा का चेहरा बन सकते हैं। दरअसल 1962 के पहले वर्षों में जनसंघ अपने लिए यूपी में एक मजबूत और ताकतवर चेहरा ढूंढ रहा था। हरीश बाबू ने कल्याण सिंह काे उस समय सक्रिय होने के लिए कहा और लोधी आबादी के आधार पर 1962 में ही भाजपा ने उन्हे अतरौली विधान सभा सीट टिकट दे दिया लेकिन वह पहला विधानसभा चुनाव हार गए।
हारी बाजी काे ऐसा जीता कल्याण सिंह ने

पहली बार के बाद बाद उन्हाेंने पांच साल तक जनता के बीच रहकर काम किया और इसका असर यह हुआ कि 1967 में उन्हाेंने एतिहासिक जीत हांसिल की। इसके बाद वह कभी नहीं हारे और 1980 तक लगातार विधायक रहे। यह भी कहा जाता है कि भाजपा को देश में प्रतिनिधित्व दिलाने में जो काम अटल बिहारी वाजपेई ने किया उत्तर प्रदेश में भाजपा के ऐसे ही चेहरे कल्याण सिंह थे। लगातार विधायक रहते हुए उन्हाेंने राम मंदिर को मुद्दे काे आडवानी से अपने हाथों में ले लिया था।
1991 में पहली बार यूपी में भाजपा की सरकार बनी। भाजपा की इस पहली सरकार के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बनें। उनके मुख्यमंत्री बनने के अगले ही वर्ष 1992 में कार सेवकों ने विवादित ढांचे को ढहा दिया। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे का विध्वंस हुआ और इस पूरे प्रकरण में कल्याण सिंह यानी तत्कालीन मुख्यमंत्री पर मौन सहमति का आरोप लगा। इस दौरान उन्होंने अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और कहा था कि भगवान श्री राम के लिए मैं एक सीएम की कुर्सी नहीं बल्कि हजार सीएम की कुर्सियां छोड़ सकता हूं।
उस समय कल्याण सिंह ने कहा था कि ”यह सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ है, ऐसे में हमारी सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान”

इसके बाद कल्याण सिंह बड़ा चेहरा बन गए। इसका असर यह हुआ कि 1997 में वह एक बार फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 1999 में उनकी भाजपा से नाराजगी हुई और उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया। यह नाराजगी अधिक लंबी नहीं चल सकी। बड़े नेताओं ने उन्हे मना लिया इस तह पांच साल बाद वह एक बार फिर से भाजपा में शामिल हाे गए। इसके बाद उन्हाेंने 2004 में एक बार फिर भाजपा के टिकट पर बुलंदशहर से चुनाव लड़ा और जीत हांसिल की।
2014 में बने राजस्थान के राज्यपाल

कल्याण सिंह 4 सितंबर 2014 को राजस्थान के राज्यपाल बनाए गए। 2015 में उन्हें हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया।

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