हनुमान कथा “अंजनीगर्भसम्भूतो हनुमान् पवनात्मज:
यदा जातो महादेवो हनुमान् सत्यविक्रम: ,,
“महादेव पवनसुत अंजनीनंदन, सत्य-विक्रमी हनुमान के रूप में अवतीर्ण हुए। ” एक बार भगवान् शंकर भगवती सती के साथ कैलास-पर्वत पर विराजमान थे। प्रसंगवश भगवान् शंकर ने सती से कहा- ‘प्रिये ! जिनके नामों को रट रटकर मैं गद्गद होता रहता हूँ, वे ही मेरे प्रभु अवतार धारण करके संसार में आ रहे हैं। सभी देवता उनके साथ अवतार ग्रहण करके उनकी सेवा का सुयोग प्राप्त करना चाहते हैं, तब मैं ही उससे क्यों वंचित रहूँ ? मैं भी वहीं चलूँ और उनकी सेवा करके अपनी युग-युग की लालसा पूरी करूँ।
यदा जातो महादेवो हनुमान् सत्यविक्रम: ,,
“महादेव पवनसुत अंजनीनंदन, सत्य-विक्रमी हनुमान के रूप में अवतीर्ण हुए। ” एक बार भगवान् शंकर भगवती सती के साथ कैलास-पर्वत पर विराजमान थे। प्रसंगवश भगवान् शंकर ने सती से कहा- ‘प्रिये ! जिनके नामों को रट रटकर मैं गद्गद होता रहता हूँ, वे ही मेरे प्रभु अवतार धारण करके संसार में आ रहे हैं। सभी देवता उनके साथ अवतार ग्रहण करके उनकी सेवा का सुयोग प्राप्त करना चाहते हैं, तब मैं ही उससे क्यों वंचित रहूँ ? मैं भी वहीं चलूँ और उनकी सेवा करके अपनी युग-युग की लालसा पूरी करूँ।
भगवान शंकर की यह बात सुनकर सती ने सोचकर कहा-‘प्रभो ! भगवान् का अवतार इस बार रावण को मारने के लिए हो रहा है। रावण आपका अनन्य भक्त है। यहाँ तक कि उसने अपने सिरों को काटकर आपको समर्पित किया है। ऐसी स्थिति में आप उसको मारने के काम में कैसे सहयोग दे सकते हैं ?..यह सुनकर भगवान् शंकर हँसने लगे। उन्होंने कहा- “देवि ! जैसे रावण ने मेरी भक्ति की है, वैसे ही उसने मेरे एक अंश की अवलेहना भी तो की है। तुम जानते ही हो कि मैं ग्यारह स्वरूपों में रहता हूँ। जब उसने अपने दस सिर अर्पित कर मेरी पूजा की थी, तब उसने मेरे एक अंश को बिना पूजा किये ही छोड़ दिया था। अब मैं उसी अंश से उसके विरुद्ध युद्ध करके अपने प्रभु की सेवा कर सकता हूँ। मैंने वायु देवता के द्वारा अंजना के गर्भ से अवतार लेने का निश्चय किया है। ” यह सुनकर भगवती सती प्रसन्न हो गयीं।
इस प्रकार भगवान् शंकर ही हनुमान के रूप में अवतरित हुए, इस तथ्य की पुष्टि पुरानों की आख्यायिकाओं से होती है। गोस्वामी तुलसीदास भी दोहावली (१४२) में लिखा है : “जेहि सरीर रति राम सों सोइ आदरहीं सुजान।
रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।।
सज्जन उसी शरीर का आदर करते हैं जिसको श्रीराम से प्रेम हो। इसी स्नेहवश रुद्रदेह त्यागकर, हनुमान ने वानर का शरीर धारण किया)
रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।।
सज्जन उसी शरीर का आदर करते हैं जिसको श्रीराम से प्रेम हो। इसी स्नेहवश रुद्रदेह त्यागकर, हनुमान ने वानर का शरीर धारण किया)
हनुमान चालीसा का पाठ – 108 बार श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥चौपाई॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥ राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥ महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥ कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥ राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥ महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥ कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥ लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥ रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥ सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
***** कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥ लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥ रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥ सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
***** कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥ तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥ तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥ दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥ दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥ सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥ आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥ सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥ आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥ नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥ सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥ सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥ नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥ सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥ सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥ चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥ साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥ अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
***** बर दीन जानकी माता ॥३१॥
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥ चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥ साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥ अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
***** बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥ तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥ अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥ और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥ तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥ अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥ और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥ जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥ जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥ जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥ जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥ ॥दोहा॥ पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥ ॥दोहा॥ पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
क्या करें शाम को > हनुमान जयंती पर हनुमान जी के मंदिर में लाल रंग का सिंदूर अर्पित करें। > आज शनिवार भी हैं और हनुमान जयंती तो इस खास मौके शनि और हनुमान की आराधना करें।
> पीपल के पेड़ के नीचे कड़वा तेल का दीपक जलाये और 108 बार शनि मंत्रो और हनुमान मंत्रो का जप करें। > जिस किसी के ऊपर शनि की साढ़ेसाती हैं वो इस दिन हनुमान जी की पूजा को बिलकुल अनदेखा ना करें।
> चीटियों को आटा खिलाएं > आज के दिन गलती से भी किसी निर्धन को ना सताये