पौधारोपण की कार्ययोजना पर सवाल दरअसल पौधारोपण की संख्या को लेकर किये जाने वाले सरकारी दावों को सच माने तो सरकार के पौधारोपण अभियान की कार्ययोजना पर सवाल खड़े होते हैं। पौधे रोपने के बाद उनके संरक्षण और रखरखाव के लिए किसी तरह का ठोस कार्यक्रम तैयार नहीं होता। यही कारण है कि ज्यादातर पौधे उत्सव के माहौल में रोप दिए जाते हैं लेकिन बाद में वे सूख जाते हैं या जानवर चर जाते हैं। इन पौधों के संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर किसी तरह की जिम्मेदारी या जवाबदेही तय नहीं की गई है। पौधों को रोपने के बाद उन्हें बचाने को लेकर भी कार्यदायी संस्थाओं को कोई ठोस लक्ष्य नहीं दिया जाता जिसके कारण पौधारोपण अभियान को वह सफलता मिल नहीं पा रही जो लक्ष्य सरकार निर्धारित करती है।
पौधे की गिनती का बदला जाये नियम बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सुनील तिवारी कहते हैं कि पौधारोपण की गणना की सरकारी प्रक्रिया में दोष है। पेड़ की गणना आयुवर्ष के हिसाब से की जानी चाहिए। यानि जो पौधे रोपे जा रहे हैं, उनके कम से कम एक वर्ष तक जीवित रह जाने के बाद उसे गिनती में शामिल किया जाये। एक वर्ष के दौरान कोई पौधा सभी मौसम देख लेता है और उसके जीवित बच रहने की संभावना बढ़ जाती है। पौधारोपण के असल लक्ष्य हासिल न हो पाने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण यही है कि कार्यदायी संस्थाओं की लक्ष्य आधारित जवाबदेही तय नहीं की गई है। केवल पौधों को रोपना ही लक्ष्य मान लिया गया है जिसके कारण बड़ी संख्या में पौधे रोपे जाने के बाद भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही। तिवारी कहते हैं कि पौधों की गणना को लेकर यह सुझाव उन्होंने वर्ष 2012 में लोकसभा की संसदीय समितियों को दिया था। बाद में कई गैर सरकारी संगठनों के विरोध के कारण यह मामला अधर में लटक गया।