शव छीनने की हुई थी कोशिश जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार ने कहा कि पीड़िता की मृत्यु दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में सुबह हो चुकी थी। लगभग 1000 लोगों द्वारा अस्पताल परिसर में ही हंगामा किए जाने कारण शव को पोस्टमार्टम के बाद हाथरस ले जाने के लिए बाहर लाने में ही लगभग 10 घंटे का समय लग गए थे। यही नहीं कुछ संगठनों के उपद्रवी तत्वों ने शव को छीनने की भी कोशिश की थी। वहीं हाई कोर्ट की ओर से इस मामले में नियुक्त न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने कहा कि परिवार की मर्जी के बिना और परंपराओं के विपरीत दाह संस्कार संविधान के अनुच्छेद-25 का उल्लंघन है और अपरिहार्य कारणों के लिए कुछ गाइडलाइन तय होनी चाहिए। अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही ने इस पर बचाव किया कि सरकार की नीयत साफ थी।
असमाजिक तत्व पहुंच चुके थे गांव परिवार की बिना मर्जी के अंतिम संस्कार के सवाल पर हाथरस के जिलाधिकारी ने बताया कि 29 सितंबर को रात्रि 12.30 बजे शव गांव पहुंचा। उस समय तक गांव के बाहर बड़ी संख्या में असमाजिक तत्व पहुंच चुके थे और हिंसा पर उतारू थे। शव की हालत भी लगातार बिगड़ती जा रही थी। स्थानीय स्तर की परिस्थितियों के कारण ही अंतिम संस्कार रात में ही कराने का फैसला लेना पड़ा। वहीं अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी और पुलिस महानिदेशक हितेश चंद्र अवस्थी ने भी कोर्ट में अपना पक्ष रखा।
कोर्ट ने मामले का खुद लिया था संज्ञान आपको बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने हाथरस मामले का स्वत: संज्ञान लिया और इसे ‘गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार’ टाइटिल के तहत सूचीबद्ध किया गया। न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने सोमवार दोपहर दो बजकर बीस मिनट पर केस की सुनवाई शुरू की। कोर्ट में पीड़ित परिवार के साथ ही राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी, पुलिस महानिदेशक और हाथरस के जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक पेश हुए।