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हिंदी बोलते-पढ़ते हैं, हिंदी के प्रथम पूज्य को भी जानें, जिन्होंने हिंदी को किया समृद्ध

locationलखनऊPublished: Sep 13, 2021 05:51:51 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

हिंदी दिवस पर याद करते हैं उन हिंदी सेवियों को जिन्होंने हिंदी को एक वैज्ञानिक स्वरूप दिया। इतिहास और व्याकरण लिखा। हिंदी का मानकीकरण किया। आचार्य किशोरी दास, युगुल किशोर शुक्ल, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और प्रताप नारायण मिश्र के योगदान को हिंदी को बढ़ाने में हमेशा याद किया जाएगा। इनके अलावा, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा आदि के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

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Hindi Diwas

लखनऊ. (पत्रिका न्यूज नेटवर्क). 14 सितंबर को हिंदी दिवस Hindi Diwas मनाया जाता है। हिंदी हमारी मातृभाषा है। हम हिंदी बोलते हैं, पढ़ते हैं। हिंदी बदल रही है। इस पर हमारे बुर्जुग और हिंदी प्रेमी चिंता भी करते हैं। हिंदी दिवस पर हिंदी की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त की जाती है। फिर हम हिंदी को भूल जाते हैं। हर दिन न जाने कितने शब्द अंग्रेजी में बोलते हैं। इससे हिंदी का विकास नहीं हो सकता है। भाषा और बोली हर कालखंड में बदलती है। हिंदी भी बदल रही है। इस बदलाव को हमें स्वीकार करना होगा। आज जो हिंदी हम बोल रहे हैं वह पहले ऐसी नहीं थी। हिंदी का मानकीकरण हिंदी के महापुरुषों ने किया। हिंदी का वैज्ञानिक लेखन, इतिहास लिखने वालों को भी जानना जरूरी है। हिंदी दिवस पर आइए जानते हैं हिंदी के प्रथम पूज्य को जिन्होंने हिंदी को समृद्ध किया। एक बात और भी जान लीजिए कि आखिर क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस।
क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया। बाद में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हिंदी के पाणिनि कानपुर के
हिंदी को समृद्ध करने में कानपुर के मंधना में जन्मे आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। हिंदी का व्याकरण तय करने में उनकी भूमिका उल्लेखनीय थी। हिंदी शब्द मीमांसा और हिंदी शब्दानुशासन पुस्तकें लिखकर उन्होंने भाषा का विधान बनाया। उन्हें हिंदी का पाणिनि भी कहा जाता है।
हिंदी के मार्तंड का उदय
भाषा को समृद्ध करने और राष्ट्रीयता की भावना भरने में समाचारपत्रों की महती भूमिका होती है। इस बात को समझा कानपुर के युगल किशोर शुक्ल ने, जिन्होंने 30 मई 1826 को कलकत्ता से हिंदी का पहला समाचारपत्र उदंत मार्तंड निकाला। इसके प्रकाशन के साथ ही हिंदी की समृद्धि भी प्रारंभ हो गई।
हिंदी के आचार्य रामचंद्र शुक्ल
रामचन्द्र शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर 1884 को बस्ती के अगोना गांव, में हुआ था। आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास नामक ग्रंथ पहले ‘हिंदी शब्द सागर’ की भूमिका के रूप में लिखा था, और फिर 1929 ई. में परिमार्जन के साथ अलग पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में इसी पुस्तक से सहायता ली जाती है। हिन्दी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ।
हिंदी साहित्य के युगपुरुष आचार्य द्विवेदी
रायबरेली के दौलतपुर में जन्मे और कानपुर में रहकर साहित्यिक पत्रिका सरस्वती का संपादन करने वाले आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिंदी साहित्य में तो एक कालखंड को द्विवेदी युग ही कहा जाता है।
हिंदी के प्रताप
जन्मभूमि तो प्रताप नारायण मिश्र की उन्नाव थी, लेकिन कर्मभूमि कानपुर। हिंदी के विकास में प्रताप नारायण मिश्र की भूमिका भी अग्रणी है। ब्राह्मण समाचारपत्र निकालकर उन्होंने हिंदी को और अच्छा स्वरूप देने का प्रयास किया।
इनके अलावा, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा आदि के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
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