लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रो. वाईपी सिंह ने कहा कि हिन्दी की संस्कृति ही भारतीय संस्कृति है। इसमें रक्षण और पोषण की संस्कृति है, इसमें वर्णात्मकता है। हिन्दी साहित्य बहुत ही समृद्ध साहित्य है, जो हमें हमारी परंपराओं के बारे में विस्तार से वर्णन करती हैं। हिन्दी संस्कृति की जो आत्म-सात करने की विशेषता है वही विशेषता हिन्दी भाषा की भी हैै। हिन्दी में रोम, ग्रीक, उर्दू, संस्कृति और पालि के कई शब्द मिलते हैं। आज के इस बदलते दौर में हमारी शब्दावली में कई अंग्रेजी के शब्द भी जुड़ गए हैं।
मुख्य अतिथि रजनीकांत मिश्रा ने कहा कि भारत के सभी प्रदेशों में हिन्दी भाषा के लिए लोगों में रूचि देखी गई है। यह एक बहुत ही विशाल भाषा है, जो अन्य देशों, नेपाल, मारीशस आदि देशों के लोगों द्वारा भी बोली और अच्छी तरह से समझी जाती है। यह एक दूसरे के साथ बातचीत करने के लिए बहुत आसान और सरल साधन प्रदान करती है। यह विविध भारत को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसलिये इसे संपर्क भाषा भी कहा जाता है।
प्रो. डीपी सिंह ने कहा कि जिस प्रकार अंग्रेजी की शब्दावली में कई हिन्दी और संस्कृत के कई शब्द मिलते हैं उसी प्रकार हमारी हिन्दी शब्दावली भी अब परिवर्तित हो रही है और यह कोई कमी नहीं बल्कि हमारी आत्मसात करने की ताकत है जो की समय के साथ अन्य भाषाओँ को भी खुद में समाहित कर रही है।