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होलिका दहन 9 मार्च को रात 11.26 बजे करें,10 को खेला जाएगा रंग

locationलखनऊPublished: Feb 27, 2020 08:51:31 am

Submitted by:

Neeraj Patel

रंगों का त्योहार होली इस साल 2020 में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा गुरुवार 10 मार्च को उत्तर प्रदेश सहित देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाएगी

होलिका दहन 9 मार्च को रात 11.26 बजे करें,10 को खेला जाएगा रंग

लखनऊ. रंगों का त्योहार होली इस साल 2020 में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा गुरुवार 10 मार्च को उत्तर प्रदेश सहित देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाएगी, लेकिन इसके एक दिन पहले 9 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा। रंगों के इस पावन त्योहार का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। होलिका दहन पर कई वर्षों बाद इस बार दुर्लभ संयोग बन रहे हैं। इन संयोगों के बनने से कई अनिष्ट दूर होंगे। कई तरह की बुराइयां खत्म हो जाएंगी। वहीं दूसरी ओर फाल्गुन कृष्ण अष्टमी से होलाष्टक की शुरुआत हो जाएगी। होलाष्टक आठ दिनों को होता है। होलिका दहन भद्रा के बाद ही करना शुभ है। ऐसा माना जाता है कि भद्रा में होलिका दहन नहीं किया जाता है।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और समय

लखनऊ निवासी ज्योतिषाचार्य दिनेश तिवारी के अनुसार इस साल 2020 में होलिका दहन करने का सबसे अच्छा शुभ मुहूर्त 11.26 बजे हैं। इस शुभ मुहूर्त में
होलिका दहन करने आपकी सारी बुराइयां खत्म हो जाएंगी। बुराई पर अच्छाई की जीत होगी।

9 मार्च: सोमवार: छोटी होली, होलिका दहन, फाल्गुन पूर्णिमा

10 मार्च: मंगलवार: होली

संध्या काल में- 06 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तक
भद्रा पुंछा – सुबह 09 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 51 मिनट तक
भद्रा मुखा : सुबह 10 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक
होलिका दहन करने का समय : 9 मार्च रात 11 बजकर 26 मिनट

होलिका दहन कथा

शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन की परंपरा भक्त और भगवान के संबंध का अनोखा एहसास है। कथानक के अनुसार भारत में असुरराज हिरण्यकश्यप राज करता था। उनका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप विष्णु द्रोही था। हिरण्यकश्यप ने पृथ्वी पर घोषणा कर दी थी कि कोई देवताओं की पूजा नहीं करेगा। केवल उसी की पूजा होगी, लेकिन भक्त प्रहलाद ने पिता की आज्ञा पालन नहीं किया और भगवान की भक्ति लीन में रहा। हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद की हत्या कराने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया तो उसने योजना बनाई। इस योजना के तहत उसने बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को वरदान मिला था, वह अग्नि से जलेगी नहीं। योजना के तहत होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान ने भक्त प्रहलाद की सहायता की। इस आग में होलिका तो जल गई और भक्त प्रहलाद सही सलामत आग से बाहर आ गए। तब से होलिका दहन की परंपरा है। होलिका में सभी द्वेष भाव और पापों को जलाने का संदेश दिया जाता है।

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