पति घर में पूर्णरूपेण शोभा पर आश्रित शोभा स्कूल और घर बड़ी कुशलता से संभालती है। पति घर में पूर्णरूपेण शोभा पर आश्रित है कोई भी काम बिना शोभा की सहायता के नहीं कर सकता। कहतें है समय के साथ परिस्थितियां बदलती हैं परन्तु अफसोस आज से सदियों पहले जो स्थिति नारी की थी आज भी वही है। अपमानित होकर पति के घर में पड़ा रहना ही उसका भाग्य समझा जाता रहा है। विडम्बना यह है आज की शिक्षित नारी यदि इसका विरोध करती है तो हमारा समाज लांछित करता है आखिर क्यों? इसका कारण यह है कि भारतीय समाज पुरूष प्रधान है बिरले ही होते हैं ऐसेे पति जो पत्नी को ऊँचा उठता देखें। अधिकतर अभिमानवश पति पत्नी की उन्नति में बाधक सिद्ध होते है। इस नाटक में भी यही दर्शाया गया है।
समय-समय पर शोभा को हतोत्साहित करता अजित को शोभा का नौकरी करना, कार्यक्रमों में भाग लेना, इधर-उधर जाना बिल्कुल पंसद नहीं। इसी कारण वह समय-समय पर शोभा को हतोत्साहित करता है। अजीत का एक घनिष्ठ मित्र जयन्त है। जयन्त और उसकी पत्नी मीना के प्रारम्भिक सम्बन्ध ठीक नहीं थे कि दोनों विपरीत वातावरण में कार्यरत थे किन्तु समय के साथ सब ठीक हो गया।
भूल को स्वीकार नहीं करता है पति पत्नी के बीच की दरारें जयन्त शोभा को महिला विद्यालय में प्रिसिंपल का पद दिलवाना चाहता था जिसे शोभा ने अस्वीकार कर दिया था परन्तु जयन्त के समझाने पर वो मान जाती है। शोभा जानती थी कि अजीत को यह सुनकर अच्छा लगा होगा उधर अजीत की जीजी ने पति-पत्नी दोनों को समझाने को भरसक प्रयास करती है मगर अजीत अपनी भूल को स्वीकार नहीं करता है पति पत्नी के बीच की दरारें बढ़ती गई परिणाम स्वरूप शोभा घर छोड़ते समय अपनी बेटी अप्पी को साथ ले जाना चाहती है परन्तु अजीत बच्ची को अपनी पत्नी के साथ नहीं भेजता है। माता-पिता के आपसी तनाव का दुष्प्रभाव बच्चों पर बहुत अधिक पड़ता है। इस नाटक को 60 दिवसीय कार्यशाला के अन्तर्गत लखनऊ के वरिष्ठ रंगनिर्देशक श्री प्रभात कुमार बोस द्वारा कार्यशाला का संचालन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डा0 डी0सी0 पाण्डेय सेवानिवृत्त आई0जी0 पुलिस (आई.पी.एस.) द्वारा दीप प्रज्जलित कर समस्त कलाकारों को आशीर्वाद प्रदान किया गया। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री बी0एन0 ओझा, उपनिदेशक सेवानिवृत्त स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग, लखनऊ ने भी कलाकारों को आशीर्वाद प्रदान किया।
सशक्त अभिनय से दर्शक को अत्यधिक प्रभावित मंच पर अजीत की प्रधान भूमिका में तारिक इकबाल एवं शोभा की भूमिका में वसुधा सक्सेना तथा जयन्त की भूमिका में अशोक लाल, मीना की भूमिका में श्रद्धा बोस, दद्दा जी की भूमिका में विजय मिश्र, बंसी/सेठ सम्पतलाल की भूमिका में मोहित यादव, नौकर की भूमिका में शाजे़ब खान तथा डाक्टर की भूमिका में प्रभात कुमार बोस एवं क्लर्क की भूमिका में सचिव कुमार शाक्य आदि ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों को अत्यधिक प्रभावित किया। सेट परिकल्पना अशोक लाल एवं ऋषभ तिवारी का था, सेट निर्माण संतोष एवं शाजे़ब खान का था, मंच सज्जा दीपिका श्रीवास्तव एवं कृतिका शर्मा का था, मंच व्यवस्था अजय गौड़ और अभिषेक गुप्ता का था, वेशभूषा में अवन्तिका शर्मा एवं रमा शर्मा का था।
प्रकाश परिकल्पना की कमान प्रकाश परिकल्पना की कमान सम्भाली थी लखनऊ के सुप्रसिद्ध कलाकार गिरीश ‘‘अभीष्ट’’ का था, संगीत निर्देशन निखिल कुमार श्रीवास्तव का था, रूपसज्जा शिवकुमार श्रीवास्तव ‘‘शिब्बू’’ का था इसके अतिरिक्त कार्यशाला निर्देशक एवं उद्घोषक वरिष्ट रंग निर्देशक प्रभात कुमार बोस का था एवं सम्पूर्ण परिकल्पना एवं निर्देशन आनन्द प्रकाश शर्मा का था। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि ये नाटक रंग दर्शकों पर अत्यधिक प्रभाव डाल गया।