हाईब्रिड नेता पुस्तक विमोचन के मौके पर लेखक सुधीर मिश्र ने बताया कि पुस्तक के पहले संकलन में ‘ट्रेंड हो ठेकेदार’ के जरिये कैसे बात राजनेताओं के आईआईएम के प्रशिक्षण से शुरू होते हुए अन्त तक एक ठेकेदार-मंत्री पर आकर रूकती है।ये सुधीर मिश्र की शैली कहें या उनका बेबाक अंदाज जिसका उल्लेख उनके एक अन्य व्यंग्य निबंध, मुकरी और नेतागिरी की ठुमरी का ध्यान आता है। यू टर्न को ही लीजियेगा इस संकलन के पढ़ने से पता चलता है कि कैसे बिना आंसू बहाए रोना भी एक कला हो गई है। कहीं नगर नगर निगम तो कहीं ग्राम पंचायत, विधान सभा हो या लोकसभा, कुछ नहीं तो कर्मचारी यूनियन और छात्रसंघों के चुनाव तो हैं ही।
कुल मिलाकर नेतागिरी फुलटाइम जॉब है। उनके एक अन्य संकलन में जाति बंधन के जरिये समाज में गैर बिरादरी में विवाह को लेकर होने वाली दिक्कतों का मार्मिक जिक्र किया गया है तो वहीं चुनाव को दौरान जाति के वोटबैंक की राजनीति पर करारा प्रहार किया है। उधार लेकर जियो में सुधीर मिश्र ने भारतीय बैंको से हजारों करोड़ लेकर विदेश फुर्र होने का व्यंग्यात्मक चित्रण किया है तो दूसरी तरफ ग़रीब किसान हैं। बैंको के कुछ हज़ार के कर्ज से ही घबराकर आत्महत्या कर लेते है। वहीं सियासी पशु के जरिये बताने की कोशिश की गई है कि कैसे गाय एक मजहबी जानवर हो गई है, जो दूध देने के अलावा खाल, खुर, आंतें और मांस भी मिलता है, जिससे विदेशी मुद्रा भी मिलती है। सुधीर मिश्र के हाईब्रिड नेता के संग्रह में उनके संघर्ष दौरान अनुभव और खराब व्यवस्थाओं के बीच एक टकराहट का चित्रण है।