आईआईटी के वैज्ञानिक निरंतर चिकित्सा के क्षेत्र में भी नए-नए शोध कर रहे हैं। संस्थान के बीएसबीई विभाग के प्रो. अशोक कुमार ने बताया कि नैनो हाइड्रोक्सापटाइट बेस्ड पोरस पॉलीमर कंपोजिट स्कॉफोल्ड्स फॉर बॉयोएक्टिव मॉलीक्यूल डिलीवरी इन मसक्यूलोस्केलटल रीजनरेशन टेक्नोलॉजी विकसित की है। इसमें अरुण कुमार तेवतिया भी सहयोगी रहे हैं।
ये भी पढ़ें : NAREGA: उत्तर प्रदेश समेत 30 राज्यों में 1 अप्रैल बढ़ जाएगी मजदूरों की दिहाड़ी, जानिए नई दरें ये होगी प्रक्रिया प्रो. अशोक कुमार ने बताया कि इसे सीधे इम्प्लांट साइट पर पहुंचा सकते हैं। नई पूरी तरह बॉयोडिग्रेडेबल है और इसमें बोन रीजनरेशन के लिए ऑस्टियोइंडक्टिव (हड्डी उपचार प्रक्रिया) और ऑस्टियोप्रोमोटिव (नई हड्डी के विकास के लिए सामग्री) का गुण हैं। इस मिश्रित सकफोल्डस का उपयोग बड़े आकार की हड्डी के दोषों के भराव में बिना कनेक्टिविटी और संरचनात्मक दोषों, ऑक्सीजन और रक्त परिसंचरण से समझौता किए बिना किया जा सकता है। इसका उपयोग भविष्य में हड्डी के विकल्प के रूप में भी किया जा सकता है। संस्थान के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि इस तकनीक से चिकित्सा क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा। समझौते के समय प्रो. एस गणेष प्रो. अमिताभ बंदोपाध्याय, प्रो. अंकुश शर्मा, प्रो. अशोक कुमार, प्रो. गोपाल पांडेय, डॉ. सुधीर रेड्डी आदि मौजूद रहे।