शुक्रवार को आयोजित इस वेबिनार का विषय था, ‘उत्तर प्रदेश में कोरोना टीकाकरणः अवसर और चुनौतियां।’ इसमें उत्तर प्रदेश राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉ. अजय घई; राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के उत्तर प्रदेश में रुटीन टीकाकरण के महा प्रबंधक डॉ. मनोज कुमार शुकुल; किंग जॉर्ज्स मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ की प्रोफेसर और माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष प्रो. अमीता जैन और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग की प्रोफेसर जीबा जाका उर रब ने अपने विचार साझा किए।
कोविड-19 की ताजा लहर से भी प्रभावित हुआ टीकाकरण राज्य के टीकाकरण अधिकारी डॉ. अजय घई ने बताया, “उत्तर प्रदेश ने अब तक कोविड-19 के 1 करोड़ 3 लाख टीके लगा लिए हैं। सिर्फ लखनऊ में ही प्रति दिन 15 से 20 हजार टीके लगाए जा रहे थे। लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर आने के बाद स्वास्थ्य विभाग का ध्यान कोरोना नियंत्रण और प्रबंधन पर और बढ़ गया है। इस वजह से टीकाकरण से थोड़ा ध्यान बंटा है।” साथ ही उन्होंने कहा “लक्ष्य वर्ग की आबादी के साथ ही टीके की उपलब्धता को भी ध्यान में रख कर ही टीकाकरण के प्रति दिन का लक्ष्य तय किया जाता है।” उन्होंने कहा कि लोग अगर टीकाकरण के लिए केंद्र पर आने से पहले ही को-विन पोर्टल पर रजिस्टर कर लेते हैं तो पहले से अंदाजा हो सकेगा कि कितनी डोज की जरूरत होगी। प्रदेश के हर जिले में एक विशेष वैन तैयार की गई है जो राज्य के हर कोने में टीके की आपूर्ति सुनिश्चित कर रही है।
राज्य में रुटीन टीकाकरण के महा प्रबंधक डॉ. मनोज कुमार शुकुल ने कहा टीका उत्सव के दौरान 11 से 13 अप्रैल के बीच उत्तर प्रदेशों में 14,55,900 लोगों को टीका लगाया गया है। पहले कोवैक्सीन 20 डोज की वायल में उपलबध थी। एक बार वायल को खोलने पर चार घंटे के अंदर उसका उपयोग करना होता है। इससे टीके की डोज बर्बाद भी हो रही थी। लेकिन अब कोवैक्सीन भी कोविशिल्ड की तरह 10 डोज की वायल में उपलब्ध है। इसलिए बर्बादी भी कम हो गई है।”
टीकों को ले कर अब नहीं हिचहिचाहट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बाल बाल रोग विभाग की प्रोफेसर जीबा जाका उर रब ने प्रदेश के विभिन्न वर्गों में टीकों को ले कर हिचकिचाहट के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा वैज्ञानिकों ने इस बात का पहले ही अंदाजा लगा लिया था और कहा था कि जैसे-जैसे टीकाकरण का विस्तार होगा, लोगों की हिचकिचाहट दूर होती जाएगी। टीका लगाने वालों के अनुभव को देखने के बाद दूसरे भी प्रोत्साहित होंगे। जब टीकाकरण शुरू हुआ था उस समय बहुत से स्वास्थ्यकर्मी भी इसको ले कर आशंकित थे। लेकिन जब कोरोना से होने वाली गंभीर समस्याओं को दूर करने में इसका प्रभाव दिखाई देने लगा तो टीकों को ले कर लोगों में भारी उत्साह देखा जाने लगा है। कोरोना संक्रमण से लड़ने में अब यह सर्वाधिक अहम साधन के रूप में देखा जा रहा है। डॉ. अजय घई ने कहा कि टीके के साइड इफेक्ट को ले कर लोगों को डरना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा, प्रदेश में हर व्यक्ति को टीका लगाने के बाद पैरासीटामोल की दो गोलियां दी जा रही हैं ताकि बुखार या बदन दर्द होने पर वे इसे ले सकें। टीकाकरण के बाद बेहोशी जैसी कुछ घटनाएं भी देखी गईं, लेकिन यह इंजेक्शन लेने और टीका लेने से जुड़े शुरुआती मनोवैज्ञानिक भय की वजह से थीं।
बूस्टर डोज की जरूरत पर शोध जारी केजीएमयू, लखनऊ में माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अमिता जैन ने कहा, “कुछ टीकों के मामलों में बूस्टर डोज बहुत महत्वपूर्ण होती है। इससे टीके का प्रभाव लंबे समय तक सुनिश्चित हो पाता है। मीजल्स के मामले में जहां बूस्टर डोज की जरूरत नहीं होती, वहीं टेटनस के मामले में 10 साल के बाद एक बूस्टर डोज बेहद उपयोगी होती है। कोविड-19 नया वायरस है और अभी इस टीके के अभी दुनिया भर में दो डोज ही दिए जा रहे हैं, लेकिन भविष्य में इसकी और बुस्टर डोज की जरूरत हो सकती है। जिस तरह इसके संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है ‘टेस्ट, ट्रेस एंड ट्रीट’ की पुरानी नीति फिलहाल बहुत कारगर नहीं होगी। कांटेक्ट ट्रेसिंग बहुत कठिनहोती है और फिलहाल इसकी जरूरत नहीं होगी। इसकी बजाय सरकार को अस्पताल में बेड और इलाज की सुविधा बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
वक्ताओं ने जोर दिया कि टीके के पात्र लोगों को को-विन प्लेटफार्म पर खुद रजिस्टर करना चाहिए। साथ ही इन्होंने भ्रामक सूचना और फेक न्यूज से सचेत करते हुए सिर्फ विश्वस्त स्रोतों से मिलने वाली सूचना को ही गंभीरता से लेने को कहा।