scriptजब नानाजी ने चंद्रभानु गुप्त के खिलाफ बाबू त्रिलोकी सिंह को चुनाव लड़ा दी थी बड़ी शिकस्त | In 1957 Nanaji fought and defeated Chandra Bhanu Gupt by Triloki Singh | Patrika News

जब नानाजी ने चंद्रभानु गुप्त के खिलाफ बाबू त्रिलोकी सिंह को चुनाव लड़ा दी थी बड़ी शिकस्त

locationलखनऊPublished: Jan 25, 2019 09:58:46 pm

Submitted by:

Ashish Pandey

गोरखपुर में खोल पहला सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल।
 

nanaji

जब नानाजी ने चंद्रभानु गुप्त के खिलाफ बाबू त्रिलोकी सिंह को चुनाव लड़ा दी थी बड़ी शिकस्त

लखनऊ. नानाजी देशमुख को मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया है। शुक्रवार को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इसकी घोषणा की गई। इस बार दिन हस्तियों को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गई है। नानाजी देशमुख, भूपेन हजारिका (दोनों को मरणोपरांत) और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने की घोषणा की गई है।
नाना जी देशमुख एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने ने अपना पूरा जीवन समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया था। उनका जन्म तो महाराष्ट्र में हुआ पर उनकी कर्मभूमि उत्तर प्रदेश रही। उन्होंने सबसे पहला सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल गोरखपुर में खोला था।
नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था। इनके पिता का नाम अमृतराव देशमुख तथा माता का नाम राजाबाई था। नानाजी के दो भाई एवं तीन बहने थीं।
सभी जिलों में अपनी इकाइयाँ खड़ी कर ली
नानाजी का उत्तर प्रदेश से काफी लगाव रहा है। जब आरएसएस से प्रतिबन्ध हटा तो राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीय जनसंघ की स्थापना करने का फैसला हुआ। श्री गुरूजी ने नानाजी को उत्तर प्रदेश में भारतीय जन संघ के महासचिव का प्रभार लेने को कहा। नानाजी के जमीनी कार्य ने उत्तर प्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1957 तक जनसंघ ने यूपी के सभी जिलों में अपनी इकाइयाँ खड़ी कर ली। इस दौरान नानाजी ने पूरे यूपी का दौरा किया। जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही भारतीय जनसंघ यूपी की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गई।
यूपी की बड़ी राजनीतिक हस्ती चन्द्रभानु गुप्त को नानाजी की वजह से तीन बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। एक बार, राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता और चंद्रभानु के पसंदीदा उम्मीदवार को हराने के लिए उन्होंने रणनीति बनाई। 1957 में जब गुप्त स्वयं लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे तो नानाजी ने समाजवादियों के साथ गठबन्धन कर बाबू त्रिलोकी सिंह को बड़ी जीत दिलाई। 1957 में चन्द्रभानु गुप्त को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा।
दशा और दिशा दोनों ही बदल दी

भारतीय जनसंघ को स्थापित करने में नानाजी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। जनसंघ को यूपी में बड़ी शक्ति के तौर पर स्थापित कराने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। नाना जी के केवल पार्टी कार्यकर्ताओं से ही नहीं बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी संबंध बहुत अच्छे थे। चन्द्रभानु गुप्त भी, जिन्हें नानाजी के कारण कई बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, नानाजी का दिल से सम्मान करते थे और उन्हें प्यार से नाना फडऩवीस कहा करते थे। यही नहीं डॉक्टर राम मनोहर लोहिया से उनके अच्छे सम्बन्धों ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी।
अपने राज्यसभा के सांसद काल में मिली सांसद निधि का उपयोग उन्होंने इन प्रकल्पों के लिए ही किया। कर्मयोगी नानाजी ने 27 फऱवरी, 2010 को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली। उन्होंने देह दान का संकल्प पत्र बहुत पहले ही भर दिया था। अत: देहांत के बाद उनका शरीर आयुर्विज्ञान संस्थान को दान दे दिया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो