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टीले वाली मस्जिद का जंग-ए-आजादी से रहा है खास नाता, सीएम योगी के इस कदम से दोबारा आई चर्चा में

locationलखनऊPublished: Aug 17, 2018 11:09:28 am

Submitted by:

Mahendra Pratap

हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई के गवाह लखनऊ में केवल इमारतें ही नहीं हैं बल्कि यह इमली का पेड़ भी है, जहां 40 लोगों को फांसी दी गई थी

teele wali masjid

टीले वाली मस्जिद का जंग-ए-आजादी से रहा है खास नाता, सीएम योगी के इस कदम से दोबारा आई चर्चा में

लखनऊ. शान-ए-अवध लखनऊ वैसे तो अपने नवाबी कल्चर के लिए जाना जाता है लेकिन अगर पन्नों को पीछे पलट कर देखें तो इस शहर के कुछ ऐसे इतिहास सामने आएंगे, जो गवाह है क्रांतिकारियों की फांसी की। हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई के गवाह लखनऊ में केवल इमारतें ही नहीं हैं बल्कि यह इमली का पेड़ भी है, जहां 40 लोगों को फांसी दी गई थी। वक्त के साथ बूढ़े हो चले इस पेड़ का आजादी से अलग ही नाता है। इसी पेड़ पर अंग्रेजों ने कई क्रांतिकारियों को फांसी दी थी। ये वही टीले वाली मस्जिद है जहां कुछ दिनों पहले लक्ष्मण मूर्ती लगाने को लेकर बवाल हुआ था।
चौक के निवासी राष्ट्रीय किसान मंच से शेखर दीक्षित का कहना है कि आजादी के लिए भारत को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। लेकिन ये खुशी की बात है कि अलग-अलग संप्रदायों ने मिलकर आजादी का सपना देखा और उसे पूरा किया। उन्होंने बताया कि आजादी के समय कई लोगों ने शहादत दी। आज देश में भले ही राजनीति चमकाने और वोट बैंक के लिए दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलायी जा रही है लेकिन उस दौर में हर धर्म और वर्ग के लोगों ने देश को आजादी दिलाने का मिलकर बीड़ा उठाय था। तब आजाद भारत के सपने को पूरा करने की जिद थी। अगर उस दौरान इस जिद को पूरा न किया गया होता, तो आज हम हिंदुस्तानी खुली हवा में सांस न ले रहे होते।
क्या है पूरी कहानी

साल 1857 में लड़ी गी आजादी की पहली लड़ाई बेगम हजरत महल लीडरशिप के लिए थी जब कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने पकड़ लिया था। इनमें मौलवी रसूल बख्श, हाफिज अब्दुल समद, मीर अब्बास, मीर कासिम अली और मम्मू खान शामिल थे। इन्हें अंग्रेजों ने इसी इमली के पेड़ पर कच्ची फांसी दी थी। लखनऊ के बेगम हजरत महल इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं। क्रांतिकारियों ने रेजीडेंसी घेर ली थी और 3 हजार से ज्यादा अंग्रेज कैद हो गए थे। दोनों तरफ से भयंकर गोलीबारी हुई थी।
जब बुरी तरह हिल गई ब्रिटिश हुकूमत

रेजीडेंसी में मौजूद सर हेनरी लॉरेंस ने क्रांतिकारियों से लोहा लिया लेकिन उनके बुलंद इरादों के आगे सब फीका पड़ गया। हेनरी लॉरेंस को गोली लगी और उनकी मौत हो गई। ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह हिल गई। इसकी सूचना जब हेनरी हेवलॉक को मिली, तो हेनरी हैवलॉक और जेम्स आउट्रम कानपुर से लखनऊ के ब्रिटिश अधिकारियों के लिए राहत सेना लेकर आए। सेना रेजीडेंसी के साथ लखनऊ के पक्का पुल के पास बनी शाह पीर मोहम्मद की दरगाह में घुस गई। इसे टीले वाली मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इसी मस्जिद के पीछे लगे इमली के पेड़ पर क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी।
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