फेडरेशन की मांग है कि तुरन्त इस बिल को समाप्त कर दिया जाये या फिर इसे एक विशेष कमेटी जिसकी अध्यक्षता डिप्टी चीफ मिनिस्टर जो शिक्षा विभाग देखते हों या फिर एडवोकेट जनरल के अधीन भेज दिया जाय। यह सूचना इंडीपेन्डेन्ट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इण्डिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. मधूसूदन दीक्षित ने दी।
डॉ. दीक्षित ने आगे कहा कि इस एसोसिऐशन ने इससे पहले भी केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रीप्रकाश जावड़ेकर के समक्ष एक प्रस्ताव रखा था जिसमें मांग की गयी थी कि असहायतित स्कूलों में फीस का तय करना एवं बढाने का एक संविधान बनाया जाय ।जिसे सेन्ट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन को स्थानान्तरित कर दिया जाये। जो कि 1921 से सबसे उच्च एजुकेशन बॉडी है। जिसमें सभी राज्यों के शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व है जो पहले से ही केन्द्रीय सरकार को शैक्षिक नीतियों पर सलाह देते आ रहे हैं।डॉ. दीक्षित ने आगे बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी संविधान के आर्टिकल 32 के अन्तर्गत एक रिट फाइल की है, जिसमें तमिलनाडू राज्य में ऐसे ही केस को चुनौती दी है साथ ही राजस्थान,
गुजरात और महाराष्ट्र में भी प्राइवेट असहायतित स्कूल की फीस के विनियमन पर कानून बनाया गया है। टीएमआई फान्डेशन के 11 जजों की पीठ के द्वारा बहुमत न्यायिक आदेश के विरूद्ध है। जो कि निजी असहायतित स्कूलों में फीस तय करने और विनियमित करने की स्वायत्ता को स्थापित करता है।
डॉ. मधूसूदन दीक्षित ने आगे बताया कि मुख्यमंत्री को भेजे गये अपने प्रस्ताव में एसोसियेशन ने यह संशय व्यक्त किया है कि ऐसा निर्णय लेफ्ट ओरियेन्टेड एनजीओ व टीचरों की यूनियन के दबाव में निजी असहायतित स्कूलों के केस में एक कमेटी संगठित करने का लिया गया है। ऐसा करने से इन स्कूलों की दशा भी सहायता प्राप्त स्कूलों जैसी हो जायेगी जहां प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चे को भेजने के लिए हिचकिचायेगा जब तक वह फीस देने में सक्षम ना हो।
डॉ. दीक्षित ने कहा कि बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम (आरटीई) 2009 के लागू होने के बाद प्राइवेट स्कूलों को पहले से ही 25 प्रतिशत समाज में पिछड़े व कमजोर वर्ग के बच्चों की निःशुल्क शिक्षा देने की अनिवार्यता है। अतः बाकी 75 प्रतिशत सीटों के लिए फीस तय करना एवं उसके विनियम पर प्रतिबन्ध अस्वीकार्य है।
यह इन्डिपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इण्डिया अधिकतर उन स्कूलों का प्रतिनिधित्व करता है जो कि सीबीएसई या आईसीएसई जैसे केन्द्रीय बोर्डों से सम्बद्ध हैं जिनका अपना ही संबद्धता का उपनियम है जिसके अन्तर्गत स्कूल फीस ली जाती है तथा नियमित होती है। ये स्कूल केन्द्रीय बोर्ड से सम्बद्धता लेने से पूर्व ही राज्य सरकार से ‘एनओसी’ प्राप्त कर लेते हैं तथा ‘एनओसी’ लेने के पश्चात राज्य इन स्कूलों को नियंत्रित नहीं कर सकती है।