उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों में भले ही भापजा मेयर के सभी पदों पर विजयी रही है, लेकिन पालिका परिषद और पंचायतों में उसे भारी नुकसान हुआ है। मेयर के टिकट तो हाईप्रोफाईल माने जाते हैं, जिसका निर्धारण लखनऊ और दिल्ली के नेताओं द्वारा किया गया है। लेकिन स्थानीय निकाय में परिषद और पंचायतों के टिकट में जिला अध्यक्षों ने मनमाने तौर पर निर्णय लिया है। संघ कार्यकर्ता कई जगहों पर टिकटों को बेंच देने का आरोप भी लगा रहे हैं। यहां तक कि ज्यादातर स्थानों पर जहां पर पार्टी चुनाव हार गई है, वहां पर संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं ने मौन साध लिया और चुनाव में निष्क्रिय हो गए जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा है।
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही कार्यकर्ताओं और नेताओं की बाढ़ आ गई है। भाजपा नेता और मंत्री भी मूल और नए कार्यकर्ताओं में फर्क नहीं कर पा रहे हैं। कहावत है कि नया मुल्ला प्याज अधिक खाता है, तो नए कार्यकर्ता कुछ ज्यादा ही जोर-शोर से हार्डकोर भाजपाई बन रहे हैं, जिससे मूल कार्यकर्ता शांत हो गया है। इसका खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को आगामी लोक सभा चुनावों में उठाना पड़ सकता है।