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International Women’s Day : कभी रहीं भूखीं तो कभी कहलाईं ‘बच्चा चोर’, इन महिला भूविज्ञानियों के जज्बे को सलाम

locationलखनऊPublished: Mar 08, 2021 05:01:59 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

International Women’s Day : कहानी तीन महिला भू-विज्ञानियों की, उन्हीं की जुबानी…

International Women's Day : कभी रहीं भूखीं तो कभी कहलाईं 'बच्चा चोर', इन महिला भूविज्ञानियों के जज्बे को सलाम

International Women’s Day : कभी रहीं भूखीं तो कभी कहलाईं ‘बच्चा चोर’, इन महिला भूविज्ञानियों के जज्बे को सलाम

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. International Women’s Day. कहीं दूर बीहड़ में एक हाथ में हथौड़ा और दूसरे में कम्पास, महिला भूविज्ञानियों (जियोलॉजिस्ट) के लिए यह राह आसान नहीं रही। दूरदराज के खतरों के बावजूद, जंगली जानवरों के साथ मुठभेड़, शौचालय तक सीमित पहुंच और परेशान क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवादियों द्वारा कभी-कभार ‘नजरबंदी’, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की इन महिलाओं ने सफलता की कहानियों को उकेरने की बाधाओं को समेटा है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, लखनऊ में तैनात कुछ महिला भूविज्ञानियों से हमने बात की और उनके अनुभवों को जाना-
1. केदारनाथ त्रासदी : अध्ययन में शामिल इकलौती महिला
वरिष्ठ भूविज्ञानी, रूचि महरोत्रा अपने जीवन का ये अहम किरदार कुछ यूं बयान करती हैं-
मैं रानी की तरह महसूस कर रही हूं, संपूर्ण पृथ्वी मेरा राज्य है .
तलवार नहीं, परंतु एक हथौड़ा ..
चट्टानों की शिकायतें सुनकर, तनाव उनके भूल
उनमें छिपे अन्नंत धातु खोज रही हूं,
हां, मैं एक रानी की तरह महसूस कर रहा हूं !!!!
रुचि रिमोट सेंसिंग डिवीजन में रहकर देश के कई हिस्सों का सर्वेक्षण कर चुकी हैं। वे कहती हैं कि ‘मुझे गर्व है, मैं वास्तव में इस दुनिया से आकाश तक सैटेलाइट इमेजेस का अध्ययन करने के साथ, छिपे हुए खनिजों को तलाश राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के स्तंभ को मजबूत करने में अपना योगदान दे पा रही हूं। वह केदारनाथ में हुई त्रास्दी के बाद अकेली महिला थीं, जो केदारनाथ बस्ती जाने वाले टीम का हिस्सा थीं। वे मानती हैं कि पहले भूविज्ञान में महिलाएं ज्यादातर प्रयोगशाला के काम से जुड़ी थीं। अब मानसिकता बदल गई है और हम अधिक से अधिक महिलाओं को मैदान पर देख रहे हैं। इस क्षेत्र में रुचि तटस्थ है और किसी को प्रकृति के प्रति प्रेम दिखाने के लिए भूविज्ञान से बेहतर और क्या हो सकता है।
2. 50 से अधिक इंटरनेशनल पब्लिकेशन
अर्पिता पंकज कहती हैं कि जीएसआई में एक भूविज्ञानी के रूप में जीवन कठिन है, लेकिन अनुभवों से भरपूर। एक महिला भूविज्ञानी के रूप में चुनौतीपूर्ण होता है जब आपको एक साथी के बिना अकेले क्षेत्र में बाहर उद्यम करने का आदेश दिया जाता है। अधिकतर उन जगहों पर जाना होता है जहां आवश्यक स्वच्छता व्यवस्था तक नहीं होती या एक पूरी टीम का नेतृत्व करना है जिसमें बाकी पुरुष हों। यही नहीं कई बार रिस्क काफी ज्यादा होता है। अर्पिता अब तक करीब 50 से अधिक इंटरनेशनल पब्लिकेशन में अपनी रिसर्च भेज चुकी हैं। साथ ही उन्होंने केपटाउन में हुए 35 वे इंटरनेशनल जियोलाजिकल कांग्रेस में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। एक वाकया उनकी ज़ुबानी-
‘हम अपनी टीम के साथ नारारा, जामनगर में थे। वहां कोरल देखने के लिए आपको समुद्र की गहराईयों में नहीं जाना पड़ता। बस 2 फुट में चलते चलते ये नज़ारा देखा जा सकता है। हम रिसर्च कर रहे थे जिसके चलते लो टाइड और हाई टाइड के बाद कोरल (जीव) सैंपल लेने थे। दरअसल, इन कोरल सैंपलों के लिए हमे समुद्री तट से करीब 4-5 किलोमीटर आगे जाना था, पैदल। हमें वहा ठीक उस समय जाना होता था जब लो टाइड हाई टाइड में तब्दील हो रही हो। समुद्र तट से चार पांच किलोमीटर अंदर लहरें काफी तेज़ होती हैं, और किसी इंसान को बहाने में सक्षम। हमने करीब 10-15 मिनट में सैंपल लेकर करीब 2.5 मिनट के समय में सुरक्षित में आना होता है। इसके लिए ज़रूरत पड़ने पर हम दौड़ते भी थे। नीचे कोरल, हाई टाइड यदि ऐसे में किसी का भी पैर फिसलता तो बड़ी दुर्घटना हो सकती थी। यही नहीं हमें करीब 12 घंटे वही इंतज़ार करना पड़ता है क्यूंकि घर / गेस्ट हाउस काफी दूर होते हैं। खाने में बिस्कुट चिप्स और पानी के सहारे हमे ये समय गुज़ारना होता है।’
3. जब गांववालों ने समझ लिया बच्चा चोर
वरिष्ठ भूविज्ञानी श्रेया साहू बताती हैं कि यह किस्सा उन दिनों का है जब वह अपनी एक और महिलाकर्मी के साथ झारखंड क्षेत्र में कुछ ख़ास तरह के खनिज पदार्थों की खोज में थी। तभी अचानक उनको ‘बच्चा चोर.. बच्चा चोर.. पकड़ो-पकड़ो.. आगे मत जाने दो!’ की आवाज़ें सुनाई दी। जिज्ञासा के चलते जान उन्होंने चलती गाडी से बाहर ‘बच्चe चोर’ को देखना चाहा, तब उन्हें पता चाला गांव वाले उन्हीं की ओर इशारा कर रहे हैं। श्रेया उस वाक्या को कुछ यूं बयान करती है ‘अचानक ग्रामीणों की भीड़ चारों ओर इकट्ठा हो गयी। उनके हाथों में बांस की लाठियां और हसिया थे। उनकी जीभ की नोक पर गालियां थीं। हमारी गाड़ी में सन्नाटा छा गया। मुझे तो अस्पताल के सपने आने लगे और तभी धमाके से आया जीप पर पहला झटका! मैने और संगीता ने नीचे उतरने का फैसला किया। दो महिलाओं को टोपी और जूतों में लिपटे हुए देखकर एक कुछ पल के लिए गांववालों का पारा शांत हुआ। संगीता ने मुझसे कहा, श्रेया बोल, नहीं तो आज नहीं बचेंगे। वैसे मुझे विश्वास है, बोलने का मौका दिया और आप न बोले, ये वास्तव में एक अपराध है। फिर मैंने खुद को जीप के बोनट पर चढ़ते हुए पाया। मेरे जीवन का वो पहला तो नहीं पर एक अहम भाषण होने वाला था। किसी तरह मैने गांववालों को अपना परिचय दिया और पेशा बताया। तभी भीड़ में एक बुजर्ग औरत बोली ‘अरे खुद्द बच्चे हैं ये तो। ये सुनकर लगभग तुरंत ही मुझमें जान आ गई। हमने उन्हें बताया कि हम गांव से बाहर, छिपे हुए खनिज के लिए नमूने ढूंढ रहे हैं।
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