संगोष्ठी के दौरान महिला वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि समाज बिना महिलाओं के सहयोग के आगे बढ नहीं सकता। अगर सीता का त्याग न होता तो राम मर्यादा पुरूषोत्तम न कहलाते, अगर उर्मिला का त्याग न होता तो लक्ष्मण का महत्व न होता। इसी तरह कई क्षेत्रों में तो महिलाएं पुरुषो से भी आगे हैं। मुख्य अतिथि भावना चौहान ने कहा कि महिलाओं के योगदान पर जितनी भी चर्चा की जाए वह कम है। वह घर से लेकर बाहर तक अपनी हर तरह की जिम्मेदारी निभाती हैं ।
संस्था की यूपी इकाई के अध्यक्ष गजेन्द्र त्रिपाठी ने कहाकि भारत को सशक्त राष्ट्र बनाना हम सबकी जिम्मेदारी है। परन्तु बिना महिलाओं के कंधे से कंधे मिलाए यह कार्य असम्भव है। उपाध्यक्ष सुषमा श्रीवास्तव ने कहा कि किसी भी बच्चे की पाठशाला की पहली शिक्षक तो मां ही होती है।
कार्यक्रम की संयोजिका व संस्था की महिला इकाई की अध्यक्ष नीरजा मिश्रा ने कहा कि आदिकाल से ही महिलाओं का योगदान देश में रहा है। जो आधुनिक काल में भी साफ दिख रहा है। राष्ट्र निर्माण में महिलाएं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।