दरअसल, नोटबंदी के तुरंत बाद आम लोगों को हो रही दिक्कतों का हल था, एटीएम मशीनों के जरिए तेजी से नए नोट बांटना। लेकिन जैसे ही यह कवायद शुरु हुई, पता चला कि एटीएम मशीन तो 2000 व 500 रुपए के नए नोट देने लायक ही नहीं। आनन-फानन में आरबीआई को डिप्टी गर्वनर एसएस मूंदड़ा की अगुवाई में एटीएम रिकैलिबरेशन के लिए एसआईटी बनानी पड़ी।
अनोखी उपलब्धि मूंदड़ा ने इसके लिए 30 नवंबर की डेड लाइन रखी। प्रतिदिन 12,000 एटीएम रिकैलिबरेशन का लक्ष्य रखा। युद्ध स्तर पर शुरु हुए इस मिशन के तहत 90 प्रतिशत एटीएम को नए नोटों के अनुसार रिकैलिबरेट किया जा चुका है।
अब तक 95 फीदी एटीएम रिकैलिबरेट 30 नवंबर तक देश के कुल 215039 एटीएम में लगभग 90 प्रतिशत को रिकैलिबरेट कर दिया गया था। नवीतनम आंकड़े के अनुसार इस समय 95 प्रतिशत एटीएम 500 और 2000 रुपए के नोट देने में तकनीकी रूप से सक्षम हैं।
देश में ऐसा पहला मिशन देश में यह अपनी तरह पहला मिशन था। इसमें तकनीकि टीम को हर एटीएम तक जाकर मशीनों को रिकैलिबरेट करना था। मिशन के लिए पहले ऐसे एटीएम चुने गए जहां सबसे ज्यादा ट्रांन्जैक्शन होता था।
भौगोलिक समस्याओं व अस्पताल जैसे महत्वपूर्ण लोकेशन के अनुसार प्राथमिकता सूची बनाई गई। इसके बाद ही मिशन को अन्जाम दिया गया। हालांकि नोटों की कमी के चलते इस कवायद का पूरा लाभ नहीं मिला।
बैंक पीओ से यहां तक पहुंचे एसएस मूंदड़ा 30 जुलाई 2014 को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर नियुक्त किए गए। इससे पहले वे जनवरी 2013 से बैैंक ऑफ बड़ौदा के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक थे और यहां से पहले यूनियन बैंक में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहे।
18 जुलाई 1954 में जन्मे मूंदड़ा कामर्स में परास्नातक हैं। वे इंडियन इंस्टीट्यूट आफ बैंकिंग एंड फाइनेंस के सर्टिफाइड एसोसिएट (सीएआईआईआईबी) भी हैं। मूंदड़ा ने 1977 में बैंक ऑफ बड़ौदा में प्रोबेशनरी अफसर के रूप में करियर शुरु किया था। बैंक आफ बड़ौदा के महाराष्ट्र व गोवा जोन के हेड रहे। तीन वर्ष तक बैंक के यूके ऑपरेशन के भी प्रमुख रहे।