डाॅ0 वर्मा ने बताया कि उपरोक्त तकनीक से हम शरीर के किसी भी कोशिका को स्टेम सेल में बदल सकते है और उस सेल से हम शरीर के किसी भी कोशिका को बना सकते है। इस तकनीक से के प्रयोग से बाहर से स्टेम सेल लेने की आवश्यकता नही पड़ती है। इस तकनीक से माध्यम से शरीर की कोशिकाओं को उनके बचपन में ले जाते है और फिर उससे जैसा चाहें वैसा काम लिया जा सकता है।
इस तकनीक का हार्ट, ब्रेन, ब्लड कैंसर, कैंसर आदि विभिन्न प्रकार के रोगो एवं जेनेटिक रोगो में के उपचार में प्रयोग किया जा सकता है। यह तकनीक किसी अंग के खराब होने जैसे लिवर सिरोसिस आदि में हो जाने पर भी उस अंग की कोशिकाओं को फिर से ठीक कर सकता है। इसे रिजनरेशन मेडिसिन कहते है। इस तकनीक के माध्यम से कृत्रिम ब्लड भी बनाया जा सकता है।
जिसे Bio-reactore कहते है। अभी इस तकनीक से प्लेटलेट्स बनाने का प्रयोग चल रहा है। इस तकनीक के माध्यम से सेल्स की वयस्क अवस्था से उसके बचपन में ले जाते है। उपरोक्त व्याख्यान में कुलपति प्रो0 मदनलाल ब्रह्म भट्ट उपरोक्त तकनीक की सराहना करते हुए कहा कि इस तकनीक को चिकित्सा विश्वविद्यालय में लाने की सम्भावनाओं को तलासा जाएगा। कार्यक्रम में प्रो0 ए0के0 त्रिपाठी, विभागाध्यक्ष, क्लीनिकल हिमैटोलाॅजी विभाग द्वारा कहा गया की विभाग में Sickle cell, Thalassemia के मरीजो पर यह तकनीक काफी कारगर होगी। इसलिए विभाग में इस तकनीक के माध्यम से उपचार की सम्भावनाओं पर कार्य किया जाएगा।