अपने अध्ययन में उन्होंने टूथ पल्प से स्टेम सेल निकाले और उन्हें छह सप्ताह तक बढ़ने देने के लिए कल्चर किया। बाद में, उनके प्रभाव की निगरानी के लिए उन्हें बोन ग्राफ्ट में ट्रांसफ्यूज किया गया। 21 दिनों के लिए नमूने की निगरानी की गई और प्रक्रिया को स्टेम कोशिकाओं के विभिन्न अनुपातों के साथ दोहराया गया। त्रिवेदी ने कहा यह आशा देता है कि जिन रोगियों में बोन ग्राफ्टिंग की जरूरत है। वे तेजी से ठीक हो सकते हैं।
अध्ययन 2021 में निप्पॉन डेंटल यूनिवर्सिटी, जापान के जर्नल ऑफ ओडोन्टोलॉजी में प्रकाशित हुआ था। इसके लिए डॉ शिल्पा त्रिवेदी को केजीएमयू के सालाना रिसर्च शोकेस में बेस्ट पीएचडी थीसिस अवॉर्ड से भी नवाजा गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि यह एक प्रयोगशाला-नियंत्रित अध्ययन था। इसलिए जानवरों की आगे की जांच की जानी है।
ओरल मैक्सिलोफेशियल विभाग में उनकी मेंटर और फैकल्टी प्रोफेसर दिव्या मल्होत्रा ने कहा जानवरों पर ट्रायल पास करने के बाद ही मानव परीक्षण शुरू होगा और अगर सफल पाया जाता है। तो यह जटिल फ्रैक्चर के रोगियों के लिए वरदान हो सकता है।