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खासियतों से भरपूर हाई-फाई है प्रेसिडेंशियल ट्रेन, आम लोग को नहीं हो सकेंगे दीदार, जानें ट्रेन का रोचक इतिहास

locationलखनऊPublished: Jun 26, 2021 11:14:02 am

Submitted by:

Karishma Lalwani

Know about the facilities and features of Presidential Train- लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के इतिहास में पहली बार प्रेसिडेंशियल ट्रेन राजधानी आ रही है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) इसी ट्रेन से लखनऊ आ रहे हैं। यह ट्रेन अपने आप में खासियतों से भरी हुई है।

Presidential Train

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लखनऊ. Know about the facilities and features of Presidential Train. लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के इतिहास में पहली बार प्रेसिडेंशियल ट्रेन राजधानी आ रही है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) इसी ट्रेन से लखनऊ आ रहे हैं। यह ट्रेन अपने आप में खासियतों से भरी हुई है। आम लोग इस ट्रेन से दीदार नहीं कर सकेंगे। दरअसल, यह आम ट्रेन की श्रेणी में नहीं आती है। इसमें मिलने वाली सुविधाएं अत्याधुनिक होती हैं। ट्रेन में बुलेट प्रूफ विंडो, जीपीआरएस सिस्टम, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, सैटेलाइट आधारित कम्युनिकेशन सिस्टम, डाइनिंग रूम, विजिटिंग रूम, लाउंज, कॉन्फ्रेंस रूम शामिल है। ट्रेन को वाइस रीगल कोच के नाम से भी जाना जाता है।
जानें ट्रेन का इतिहास

रेलवे अधिकारियों के अनुसार, राष्ट्रपति जिस ट्रेन से यात्रा करते हैं, उसे प्रेसिडेंशियल सलून भी कहते हैं। ट्रेन में दो कोच होते हैं, जिनका नंबर 9000 व 9001 होता है। अब तक देश के अलग-अलग राष्ट्रपति 87 बार इस सैलून का प्रयोग कर चुके हैं। वर्ष 1950 में पहली बार राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने दिल्ली से कुरुक्षेत्र का सफर प्रेसिडेंशियल ट्रेन से किया था। इसी क्रम में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. नीलम संजीवा रेड्डी ने भी प्रेसिडेंशियल ट्रेन से सफर किया था। इसका नियमित रूप से इस्तेमाल 1960 से 1970 के बीच होता रहा। इसके बाद वर्ष 2003 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इससे बिहार की यात्रा की थी और अब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस ट्रेन से सफर कर रहे हैं।
क्वीन विक्टोरिया के प्रयोग के बाद आया था चयन में

इतिहासकार हफीज किदवई ने ट्रेन के इतिहास को लेकर कहा है कि प्रेसिडेंशियल ट्रेन का प्रयोग 19वीं शताब्दी में किया जाता था। सबसे पहले क्वीन विक्टोरिया ने इसका प्रयोग किया था, फिर यह चलन में आ गया था। 1927 में इसे कलकत्ता में सुरक्षित रख दिया गया। ट्रेन में पर्शिया की कालीनों से लेकर सिंकिंग सोफे रहते थे।
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